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सुनो न,
सुनो न..
देखो तोड़ रहा हूं,
फूल तुम्हारे ख्यालों काl
मन की गहराइयों से,
एक-एक फूल तुम्हारी यादों का..
रेशम-सा सुनहरा,
जो तुमने दिया था..
अब वो धागा न रहा
पहनोगी न तुम।
सुन रहा हूं,
धुन तुम्हारी खामोशी की..
लबों पर जो सजी थी बांसुरी-सी,
और घाव-सी तकलीफ देती..
अदृश्य वायु से तुम्हारे शब्द,
जो कहे ही नहीं गएl
#प्रभांशु कुमार
परिचय : प्रभांशु कुमार, इलाहाबाद के तेलियरगंज में रहते हैंl जन्म १९८८ में हुआ है तथा शिक्षा एमए(हिन्दी) और बीएड हैl आपकी सम्प्रति शिक्षा अनुसंधान विकास संगठन(इलाहाबाद) में सम्भागीय निदेशक की हैl आपकी अभिरुचि साहित्य तथा निबंध में हैl आपकी प्रकाशित रचनाओं मेंख़ास तौर से आधुनिकता,खोजता हूं,वक्त और स्मार्ट सिटी ने छीन लिया फुटपाथ सहित काव्य संग्रह-मन की बात में प्रकाशित चार कविताएँ हैंl निबन्ध लेखन में राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत होने के साथ ही आकाशवाणी इलाहाबाद से कविताओं का प्रसारण भी हो चुका हैl
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Thu Apr 20 , 2017
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