गर सम्भाल सको…

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vijaylakshmi
हमारे बीच जो दीवारें हैं,
उन्हें लांघने से पहले
कुछ कहना चाहूंगी..
साथी मेरे
मैं कोमल हूँ,
मन से भी
गर सम्भाल सको,
तो छूना।
मैं अहसास हूँ,
विश्वास हो
तो पाना,
मैं गीत हूँ..
गर गा सको
तो साधना।
मैं तपस्या हूँ,
गर कर सको
तो गाँठना..
मुझे बन्धन
नहीं,बन धन
मानो,
मुझे जीवन नहीं..
जी वन मानो,
मुझे सहारा नहीं..
स हारा समझो।
हमारे बीच जो दीवारें हैं,
हल्की चोट से गिर जाएँगी
मगर याद रखना..
वो चोट मान की हो,
भोला मन है मेरा
कहीं टूटा तो,
फिर क्या पाओगे…?

                                                                                  #विजयलक्ष्मी जांगिड़

परिचय : विजयलक्ष्मी जांगिड़  जयपुर(राजस्थान)में रहती हैं और पेशे से हिन्दी भाषा की शिक्षिका हैं। कैनवास पर बिखरे रंग आपकी प्रकाशित पुस्तक है। राजस्थान के अनेक समाचार पत्रों में आपके आलेख प्रकाशित होते रहते हैं। गत ४ वर्ष से आपकी कहानियां भी प्रकाशित हो रही है। एक प्रकाशन की दो पुस्तकों में ४ कविताओं को सचित्र स्थान मिलना आपकी उपलब्धि है। आपकी यही अभिलाषा है कि,लेखनी से हिन्दी को और बढ़ावा मिले।

matruadmin

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