हर घड़ी कदम बढ़ाते रहो,
मुश्किलों के बीच रास्ता बनाते रहो।
ठहर कर पानी भी दुर्गन्ध देता है,
ठहरो नहीं,ज़िन्दगी में मुस्कुराते रहो।
लक्ष्य तक पहुँचना है हर हाल में,
ये बात हमेशा दिमाग में लाते रहो।
करना है रोशन अगला सवेरा,
यह सोच,प्रयास मन में लाते रहो।
लाख परिस्थितियाँ विपरीत होती हैं तो क्या?
किस्मत के आगे खुद लकीरें बनाते रहो।
आकार देता है जैसे कुंभकार,घड़े को,
तुम भी हौंसलों से अपने सपने सजाते रहो।
खोना-पाना तो ज़िन्दगी की फ़ितरत है,
कुछ खोकर भी अपना उद्देश्य पाते रहो।
चार दिन की है ज़िन्दगी,कट जाएगी ये यूं ही,
ज़िन्दगी के सब दिन होंगे हमारे,ये सबको बताते रहो।
#शालिनी साहू
परिचय : शालिनी साहू इस दुनिया में १५अगस्त १९९२ को आई हैं और उ.प्र. के ऊँचाहार(जिला रायबरेली)में रहती है। एमए(हिन्दी साहित्य और शिक्षाशास्त्र)के साथ ही नेट, बी.एड एवं शोध कार्य जारी है। बतौर शोधार्थी भी प्रकाशित साहित्य-‘उड़ना सिखा गया’,’तमाम यादें’आपकी उपलब्धि है। इंदिरा गांधी भाषा सम्मान आपको पुरस्कार मिला है तो,हिन्दी साहित्य में कानपुर विश्वविद्यालय में द्वितीय स्थान पाया है। आपको कविताएँ लिखना बहुत पसंद है।