अज्ञेय में विचार और विमर्श 

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jiyaur
डा प्रभात कुमार प्रभाकर नई नस्ल के हिन्दी के ऊर्जावान लेखक  हैं. इस बात का अंदाज़ा इसी से लग जाता है कि इस नये साल में ही अज्ञेय पर उनकी दूसरी और कुल चौथी पुस्तक है. अज्ञेय विचार और विमर्श डा प्रभात कुमार प्रभाकर, और डा सत्यदेव प्रसाद के सन्युक्त सम्पादन में निकला एक महत्वपूर्ण किताब है जिसे बकौल लेखक अज्ञेय को गेय बनाने की कोशिश है. इस पुस्तक में देश भर के उन्नीस आलोचकों की रचनाएं शामिल हैं. संपादक ने इसका ख्याल रखा है कि आलेख की पुनरावृति न हो और इसमें अज्ञेय के हर पहलू पर रौशनी डाली जा सके. इस संस्करण  में जहां प्रभाकर ने अज्ञेय की मुखरता पर अपनी कलम चलाई है तो अस्मिता जोशी ने असाध्य वीणा, डा शोभा कुमारी ने उनकी प्रयोगवादिता और तो प्रीति पाण्डेय ने उनके महत्वपूर्ण उपन्यास नदी के द्वीप पर दृष्टिपात किया है. लगभग तमाम लेखकों ने अज्ञेय के नये उपमान को उनकी महत्वपूर्ण देन माना है. क्योंकि अज्ञेय ने ख़ुद घोषणा की थी..
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‘ये उपमान मैले हो गये हैं
देवता इन प्रतीकों के
कर गये हैं कूच
कभी वासन अधिक घिसने से
मुलम्मा छूट जाता है….
अनंग प्रकाशन दिल्ली से इसी माह प्रकाशित ये पुस्तक कम समय में ही पाठकों के द्वारा सराही जा रही है. 395रुपये मूल्य की ये किताब वास्तव में अज्ञेय प्रेमियों, शोधार्थियों, विद्यार्थियों, और लेखकों के लिए अमूल्य निधि है.
#जियाउर रहमान जाफ़री 
नालंदा(बिहार)

matruadmin

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