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काम काम में व्यस्त रहे मेरे पापाजी।
घर की चिंता ज्यादा करते मेरे पापाजी।
सबकी खुशीयाँ पूरी करते मेरे पापाजी।
इसलिए कहलाते घर की जान वो ।।
कितना कुछ त्याग किया अपने जीवन में।
छोटी छोटी खुशियां छोड़ी बच्चो की खातिर।
फिर भी बच्चे खुश न होते अपने पापा से ।
और अक्सर कहते रहते, की क्या किया है मेरे लिए।।
ऊपर से वो बहुत कठोर से दिखते ।
अंदर से होते बहुत ही कोमल वो।
किससे कहे वो अपने मन की बात।
इसलिए अंदर ही अंदर रोते रहते है वो।
पर ऊपर से दिखते रहते सदा बहुत खुश वो।
ऐसे काम जो करते उनको ही कहते पापाजी।।
#संजय जैन
परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।
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Fri Jun 21 , 2019
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