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नैनों के कोरो तक आये
ये मोती न ढलने पाये
पीड़ा का मौसम आया है
पर पुष्प नहीं खिलने पाये।
पाषाढ़ बना लो उर को स्वयं
हारना कभी न सीखा है
न अश्रु कभी मग को रोके
इतनी ही सीमा रेखा है।
कमजोर नहीं लाचार नही
बना रखो विश्वास प्रबल
कोई भी साथ नही दे जब
स्वयं बनो खुद का संबल।
बहने देना इनको तब ही
अपनी शर्तो पर राजी हो
खुशियों की शहनाई बजा
जब उर में कुसुमित वादी हो।
अनुपम श्रृंगार है आँखों का
यूँ ही व्यर्थ नही इनको गहना
कारण बन जाये जो इनका
प्रश्न बनें उनका जीवित रहना
नाम- गीता गुप्ता
साहित्यिक उपनाम-मन
वर्तमान पता-सिनेमा रोड, हरदोई
राज्य-उत्तरप्रदेश
शहर- उन्नाव
शिक्षा-परास्नातक,बी एड,
कार्यक्षेत्र- हरदोई
विधा – गीत, ग़ज़ल, हाइकु ,पिरामिड, तांका,क्षणिका,
प्रकाशन- विभिन्न समाचारपत्रों और पत्रिकाओं में प्रकाशन
सम्मान- विभिन्न साहित्यिक समूहों से प्राप्त सम्मान
लेखन का उद्देश्य- स्वांत सुखाय, मातृभाषा की सेवा
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Fri Jun 21 , 2019
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