दास्तां ए इश्क़

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kaji
रांझणा तेरी तड़प, तेरे जज़्बात,
हीर के बेचैन हैं ख़्यालात ।
मिसालें ताउम्र रहेंगी रोशन,
कम न होंगे मोहब्बत के असरात ।।

अकेला होकर भी अकेला नहीं हूं ,
मेरे पास तेरी यादों का ज़खीरा है ।
अधूरा होकर भी अधूरा नहीं हूं,
तेरे अहसास से इश्क़ मेरा पूरा है ।।

उठ रही उंगलियां, उठ रहे सवालात,
ज़माने की नफ़रतों का कहां हमें डर है ।
तुम्हारी बांहों में हैं बांहें हमारी तो,
मुकम्मल ये चाहत का सुहाना सफ़र है ।।

दास्तां ए इश्क़ हमारे बाद भी हर्फ़ ए तवारीख़ है ,
मिटाकर भी मोहब्बत को नहीं मिटा पाओगे ।
ज़र्रे ज़र्रे में बसे हैं चाहत बनकर,
धड़कन की तरह हमें भी नहीं भूला पाओगे ।।।।

#डॉ.वासीफ काजी

परिचय : इंदौर में इकबाल कालोनी में निवासरत डॉ. वासीफ पिता स्व.बदरुद्दीन काजी ने हिन्दी में स्नातकोत्तर किया है,साथ ही आपकी हिंदी काव्य एवं कहानी की वर्त्तमान सिनेमा में प्रासंगिकता विषय में शोध कार्य (पी.एच.डी.) पूर्ण किया है | और अँग्रेजी साहित्य में भी एमए कियाहुआ है। आप वर्तमान में कालेज में बतौर व्याख्याता कार्यरत हैं। आप स्वतंत्र लेखन के ज़रिए निरंतर सक्रिय हैं।

matruadmin

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