ज़िंदगी की राहों में,
अवरोधक व्यवधान बहुत हैं..
हैं मुश्किलें-परेशानियां, मगर समाधान बहुत हैं …।
हम बे-खौफ चलते जाएँ,राहे मंज़िल की तरफ
सपने संजोए हैं अनेक,
दिल में अरमान बहुत हैं…!
वक्त ही सिखाता है, ज़िंदगी का सबक हमें ..
गैर तो गैर हैं अपने भी,अपनों से अंजान बहुत हैं….!
जीवन नाम संघर्ष का,रुकना नहीं चलते है जाना..
अब बाजार में मौत के, साज़ो -सामान बहुत हैं ….।
है दान-धर्म से बढ़कर,
पीड़ित मानव की सेवा..
समर्पित हों मानव सेवा में,आत्मकल्याण बहुत है…!
नई चुनौतियां हर क्षण,
सामने नई मंज़िल की राहें
सब्र और साहस रखना,यहाँ इम्तिहान बहुत हैं..।
माना आसां नहीं है, मंज़िले मक़सूद का सफर
यंहा राहों में भीड़ है, आपसी खींचतान बहुत है…।।
जाएं कहाँ जीते जी मरकर,बेंचे हों उसूल जिसने
मरने वालों के लिए तो,शहर में शमसान बहुत हैं …।।
कदम बढ़ चलें हैं ‘संतोष’,अब मंज़िल की तरफ
कोई रोके तो कैसे..?,
अंदर मेरे इंसान बहुत हैं …!!.
#सन्तोष कुमार नेमा ‘संतोष’
परिचय : लेखन के क्षेत्र में सन्तोष कुमार नेमा ‘संतोष’ जबलपुर से ताल्लुक रखते हैं। आपका जन्म मध्यप्रदेश के सिवनी जिले के आदेगांव ग्राम में 1961 में हुआ है। आपके पिता देवीचरण नेमा(स्व.) ने माता जी पर कई भजन लिखें हैं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है।1982 से डाक विभाग में सेवारत होकर आप प्रांतीय स्तर की ‘यूनियन वार्ता’ बुलेटिन का लगातार संपादन कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ में भी प्रांतीय सचिव चुने जाने पर छत्तीसगढ़ पोस्ट का भी संपादन लगातार किया है। राष्ट्रीय स्तर पर लगातार पदों पर आसीन रहे हैं।आपकी रचनाएँ स्थानीय समाचार पत्रों में प्रमुखता से छपती रही हैं। वर्त्तमान में पत्रिका के एक्सपोज कालम में लगातार प्रकाशन जारी है। आपको गुंजन कला सदन (जबलपुर) द्वारा काव्य प्रकाश अलंकरण से सम्मान्नित किया जा चुका है। विभिन्न सामाजिक संस्थाओं में भी आप सक्रिय हैं।आपको कविताएं,व्यंग्य तथा ग़ज़ल आदि लिखने में काफी रुचि है। आप ब्लॉग भी लिखते हैं। शीघ्र ही आपका पहला काब्य संग्रह प्रकाशित होने जा रहा है।