होली होनी थी हुई

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babulal sharma
.                     १
कड़वी  सच्चाई  कहूँ, कर लेना स्वीकार।
फाग राग ढप चंग बिन, होली  है बेकार।।
.                     👀२ 👀
होली होनी  थी हुई, कहँ पहले  सी बात।
त्यौहारों की रीत को,लगा बहुत आघात।।
.                     👀३ 👀
एक  पूत  होने  लगे, बेटी  मुश्किल  एक।
देवर भौजी  है नहीं, कित साली की टेक।।
.                     👀४ 👀
साली  भौजाई  बिना, फीके  लगते  रंग।
देवर  ढूँढे   कब  मिले, बदले  सारे  ढंग।।
.                     👀५ 👀
बच्चों के  चाचा  नहीं, किससे  माँगे  रंग।
चाचा भी  खाए नहीं, अब पहले सी भंग।।
.                     👀६ 👀
बुरा  मानते  है  सभी, रंगत हँसी मजाक।
बूढ़ों की भी  अब गई, पहले  वाली धाक।।
.                     👀७ 👀
पानी  बिन  सूनी  हुई, पिचकारी की धार।
तुनक मिजाजी लोग हैं,कहाँ डोलची मार।।
.                     👀८ 👀
मोबाइल   ने   कर   दिया, सारा   बंटाढार।
कर एकल इंसान को,भुला दिया सब प्यार।।
.                     👀९ 👀
आभासी  रिश्ते  बने, शीशपटल   संसार।
असली  रिश्ते भूल कर, भूल रहे घरबार।।
.                     👀१० 👀
हम  तो  पैर पसार कर, सोते चादर तान।
होली  के  अवसर लगे, घर मेरा सुनसान।।
.                     👀११ 👀
आप  बताओ  आपके, कैसे   होली  हाल।
सच में ही खुशियाँ मिली,कैसा रहा मलाल।।

नाम– बाबू लाल शर्मा 
साहित्यिक उपनाम- बौहरा
जन्म स्थान – सिकन्दरा, दौसा(राज.)
वर्तमान पता- सिकन्दरा, दौसा (राज.)
राज्य- राजस्थान
शिक्षा-M.A, B.ED.
कार्यक्षेत्र- व.अध्यापक,राजकीय सेवा
सामाजिक क्षेत्र- बेटी बचाओ ..बेटी पढाओ अभियान,सामाजिक सुधार
लेखन विधा -कविता, कहानी,उपन्यास,दोहे
सम्मान-शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र मे पुरस्कृत
अन्य उपलब्धियाँ- स्वैच्छिक.. बेटी बचाओ.. बेटी पढाओ अभियान
लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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