मैं तेरे ही गुण गाता हूँ भारत

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मैं तेरे ही गुण गाता हूँ भारत
पता नहीं किस ओर मुख करूँ
पर तेरे ही गुण गाता हूँ भारत।
तेरे वृक्षों पर बैठ बैठ कर,
खेत खलिहानों को देख देखकर,
वसंत शिशिर को सोच सोचकर,
राजनीति के दाँवपेंच में,
मैं तेरे ही गुण गाता हूँ भारत।
महाभारत को सुना सुनाकर,
रामायण को वाच वाचकर,
गीता को उठा उठाकर,
इधर -उधर की धुँध मिटाकर,
मैं तेरे ही गुण गाता हूँ भारत।
सत्ता की इस दौड़-धूप में,
हिमालय का सौंदर्य बोध ले,
गंगा की ओर कदम बढ़ाकर,
तीर्थ-तीर्थ से आत्मतत्व ले,
मैं तेरे ही गुण गाता हूँ भारत।
#महेश रौतेला,
अहमदाबाद

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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