अभिलाषा

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aashutosh kumar
सुमन सरल विचित्र अभिलाषा
अर्पित होऊ या गूथा जाऊँ
मन को तनिक भी ठेस नही
डाली से जब मै तोडा जाऊँ।

सुन्दरता कूट कूट कर
भरा हुआ है मुझमें
प्रकृति भी मेरे बिन अधूरा
मानव की तो बात मत पूछो
मुझे अर्पित कर ही
सफल होता है उसका जीवन सारा
सुमन सरल विचित्र अभिलाषा
अर्पित होऊं या गूथा जाऊँ ।

है विचत्र ये रंग निराली
हर मौसम मे रूप बदलकर आता हूँ
औरो के कल्याण को पुष्प बन जाता हूँ
हे जगत जननी तेरा है उपकार बहुत
जिसके कारण तेरा समीप्य पाता हूँ
धन्य हो जाता हूँ जब गूथा जाता हूँ।।
सुमन सरल विचित्र अभिलाषा
अर्पित होऊं या गूथा जाऊँ ।

“आशुतोष”

नाम।                   –  आशुतोष कुमार
साहित्यक उपनाम –  आशुतोष
जन्मतिथि             –  30/101973
वर्तमान पता          – 113/77बी  
                              शास्त्रीनगर 
                              पटना  23 बिहार                  
कार्यक्षेत्र               –  जाॅब
शिक्षा                   –  ऑनर्स अर्थशास्त्र
मोबाइलव्हाट्स एप – 9852842667
प्रकाशन                 – नगण्य
सम्मान।                – नगण्य
अन्य उलब्धि          – कभ्प्यूटर आपरेटर
                                टीवी टेक्नीशियन
लेखन का उद्द्श्य   – सामाजिक जागृति

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