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जीवन के इस हवन कुण्ड में,
इच्छाओं की आहुतियाँ दे
अहंकार अर्पण करके ही,
राह मोक्ष की होती हासिल।
पग पथरीले पथ से घायल,
या तूफानों के साए हो
हिम्मत नहीं हारते जो जन,
आखिर पाते हैं वो मंजिल॥
जीवन के अनवरत सफ़र में,
निश्चित आएंगी बाधाएँ
दिशाभ्रमित करके हमको नित
पथ भटकाएगी बाधाएँ।
लेकिन हमको लिए हौंसले,
ध्येय बनाकर चलना होगा
दिशाभ्रमित करती राहों से
बच के हमें निकलना होगा॥
कहीं धर्म के आड़म्बर तो,
कहीं जाति की दीवारों से
पग-पग पर टकराना होगा,
मानवता के गद्दारों से।
भाव-भावनाएं भड़काकर,
फूलों को भी ख़ार करेंगें
ओढ़-ओढ़ धर्मों के चोले,
ये शैतानी वार करेंगे॥
लेकिन निज विवेक से जिसने,
अच्छे और बुरे को जाना
भाव-भावनाएं काबू कर,
जीवन का प्रयोजन जाना।
वह निश्चित ही सत्य मार्ग पर,
अपने कदम सदा धरता है
मानवता का धर्म निभाकर
मानव की सेवा करता है॥
#सतीश बंसल
परिचय : सतीश बंसल देहरादून (उत्तराखंड) से हैं। आपकी जन्म तिथि २ सितम्बर १९६८ है।प्रकाशित पुस्तकों में ‘गुनगुनाने लगीं खामोशियाँ (कविता संग्रह)’,’कवि नहीं हूँ मैं(क.सं.)’,’चलो गुनगुनाएं (गीत संग्रह)’ तथा ‘संस्कार के दीप( दोहा संग्रह)’आदि हैं। विभिन्न विधाओं में ७ पुस्तकें प्रकाशन प्रक्रिया में हैं। आपको साहित्य सागर सम्मान २०१६ सहारनपुर तथा रचनाकार सम्मान २०१५ आदि मिले हैं। देहरादून के पंडितवाडी में रहने वाले श्री बंसल की शिक्षा स्नातक है। निजी संस्थान में आप प्रबंधक के रुप में कार्यरत हैं।
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Mon Dec 18 , 2017
चिड़िया रानी बड़ी सयानी, अपने मन की हो तुम रानी। छोटे-छोटे पैरों से तुम, फुदक-फुदक कर चलती हो। जाँच-परख कर अच्छे से, फिर चोंच से दाना चुगती हो। बड़ी गजब की फुर्तीली हो, चंचल कोमल शर्मीली हो। कभी घास पर-कभी डाल पर, चीं-चीं करती फिरती हो। खुले गगन में पंख […]