आज कल आये दिन लड़कियों के साथ हुई दुर्घटनाओं के बारे में सुनने को मिलता रहता है| कोई घटना होती है तो हर जगह उसकी निंदा करने वाले मिल जाते हैं| कोई कैंडिल मार्च निकालता है, कोई जुलूस तो कोई सड़कों पर जाम लगाता है| क्या इन सबसे पीडिता को न्याय मिल जाता है…? क्या किसी लड़की की सबसे बड़ी पूंजी, उसकी अस्मत को लुट जाने के बाद बापस लाया जा सकता है…? क्या उस मासूम की मासूमियत, उसकी मुस्कुराहट को लौटाया जा सकता है…? इन ज्वलंत प्रश्नों का जबाब आप स्वयं जानते हैं| कब तक औरत को केवल भोग की वस्तु समझा जाता रहेगा…? कब तक बालाएं सहमी, सिकुड़ी और डरी-डरी, खुद को समाज की घिनौनी नज़रों से बचाती रहेंगी…? इन प्रश्नों का जबाब शायद हमारे पास नहीं है| कौन है जो मासूमों की मासूमियत से खिलबाड़ करता है…? कौन है जो सुकोमल कलियों को मसलकर उन्हें तहस-नहस कर देता है…? कौन है जो मुस्कुराती कोमलान्गियों की अस्मत को लूटकर पाक साफ बच जाता है…? शायद इसका जबाब तो हम में से प्रत्येक के पास होगा…| क्योंकि वो कोई और नहीं… हम में से ही कोई चाचा, ताऊ, मामा, भाई, गुरु यहाँ तक कि बाप भी हो सकता है| यही है हमारे सभ्य समाज की सच्चाई…| हर समाज में, हर जगह ऐसी घटनाएँ हो रही हैं| आज कल तो विद्यालय जिनको हम विद्या का मंदिर कहते हैं, वहां भी बालिकाओं का किसी न किसी रूप में शोषण हो रहा है|
अक्सर देखा जाता है कि लडकियों पर शुरू से ही कई पावंदियाँ लगा दी जाती हैं| किससे बोलना है, किससे नहीं बोलना है, ये सब माँ-बाप निर्धारित कर देते हैं| पाबंदियां तो लगा देते हैं, साथ ही खुद भी उनके पास अपनी लाडलियों के लिए समय नहीं होता| ऐसे में लड़की अपने मन की बात कहे तो किससे कहे…? कौन है जिसे वो अपना दोस्त कहे…? ऐसे में वो रिश्ते के भाई, भतीजे, चाचा, ताऊ से बात करने की कोशिश करती है| क्योंकि माँ-बाप को इसमें कोई आपत्ति नहीं होती| विद्यालय में उसे गुरु के रूप में बातचीत करने वाला मिल जाता है| और फिर शुरू होता है लड़कियों के शोषण का सिलसिला…| उनके अपने रिश्तेदार और गुरु लोग उनकी हर मज़बूरी का फायदा उठाते हैं| किसी न किसी रूप में उसको शोषित किया जाता है| ऐसे में कोई लड़की अपने शोषण का विरोध भी करना चाहे, तो नहीं कर सकती…| क्योंकि पहले तो उसे उसका शोषण करने वालों द्वारा डरा धमका दिया जाता है| और अगर फिर भी हिम्मत करके वह इसकी शिकायत अपने माँ-बाप से करती भी है, तो उसे ही झिड़क दिया जाता है| उनका पहला प्रश्न होता है- ‘तू क्या कर रही थी वहां…? तुझे वहां जाने को किसने वोला था…?’ इस तरह के ऊट-पटांग सबाल करके वो अपनी ही लड़की को दोषी ठहरा देते हैं| समाज में शोषण की बढ़ती जा रही घटनाओं का सबसे बड़ा कारण यही है कि माँ-बाप ने अपनी ही संतानों पर विश्वास करना छोड़ दिया है| जब माँ-बाप ही सुनने को तैयार नहीं, तो फिर और कौन सुनेगा…?
कब बदल पाएंगे हम ऐसी सोच को…? जो अपने ही मासूमों के शोषण का कारण बन चुकी है| कब हम लडकियों को ऐसा माहौल दे पाएंगे जब वो हमसे खुल कर बात कर सकें…? अपनी पीड़ा को, अपने बिचारों को हमारे साथ साझा कर सकें…| हमें अपना दोस्त समझ सकें…| हमसे खुलकर बात कर सकें…| जब तक हम इस तरह का माहौल नहीं बनायेंगे, तब तक हमारी बेटियां शोषित होती रहेंगी| बदलना पड़ेगा हमें… बदलना पड़ेगा हमारी सोच को…| ये कोई ऐसा कार्य भी नहीं है कि चुटकी बजाते हो जाये| समय लगता है| लेकिन होगा तभी… जब हम शुरुआत करेंगे| तो आज से ही, बल्कि अभी से अपनी सोच को बदलना शुरू कीजिये| अपने घर के माहौल को बदलिए| धीरे-धीरे ये बदलाव आपके आस-पास से होता हुआ, समाज तक फैलेगा| फिर हमारी बेटियां सुरक्षित और शुकून से रह पाएंगी|
#मनोज कुमार “मंजू”परिचय
पूर्ण नाम~ मनोज कुमार
साहित्यिक नाम~ मनोज कुमार “मंजू”
जन्म स्थान~ मैनपुरी
वर्तमान पता~ “अयोध्या-सदन”
इकहरा, बरनाहल, मैनपुरी, उत्तर प्रदेश
स्थाई पता~ “अयोध्या-सदन”
इकहरा, बरनाहल, मैनपुरी, उत्तर प्रदेश
भाषा ज्ञान~ हिंदी, अंग्रेजी
राज्य/प्रदेश~ उत्तर प्रदेश
ग्राम/शहर~ “अयोध्या-सदन”
इकहरा, बरनाहल, मैनपुरी, उत्तर प्रदेश
पूर्ण शिक्षा~ बी. ए.
कार्यक्षेत्र~ शिक्षक
सामाजिक गतिविधि~ सक्रिय सदस्य एवं कोषाध्यक्ष, युवा जागृति मंच मैनपुरी, उत्तर प्रदेश
लेखन विधा~ मुक्तक, दोहे, घनाक्षरी, कुण्डलिया, कविता, गीत, कहानी, उपन्यास आदि
सम्पादक- वर्जिन साहित्यपीठ, दिल्ली
प्रकाशित पुस्तकें~ छेड़ दो तार- काव्य संग्रह
प्यार के फूल- कहानी संग्रह, बदल दो माहौल- मोटीवेशनल बुक
प्राप्त सम्मान~ हिन्द वीर सम्मान- साहित्य संगम संस्थान दिल्ली
सूर्यम साहित्य रत्न- सूर्यम साहित्य सागर मैनपुरी
साहित्य सारथी सम्मान- 2018
कवि चौपाल मनीषी सम्मान- 2018
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला साहित्य सम्मान- 2018
लेखनी का उद्देश्य~ मातृभाषा हिंदी को प्रसारित करना