गुज़र गया एक और साल

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kaji

गुज़र गया एक और साल फ़िर,
  ख़्वाहिशें अभी अधूरी हैं ।
नववर्ष की नवबेला में अब नहीं,
   लक्ष्य से दूरी है ।।
कितने ख़्वाब, कितने ख़्याल;
    दिल ने इस साल संजोए थे ।
वफ़ा की मिट्टी में ,
    हमने बीज इश्क के बोए थे ।।
उम्मीदें हैं नये साल में,
    ग़ुल चाहत के खिल जायेंगे ।
जो मिल न सके दीवाने,
     नये बरस में मिल जायेंगे ।।
भूल ग़िले शिक़वों को अब,
     नया साल मनाना होगा ।
 हासिल न किया जो अब तक,
      इस साल हमें वो पाना होगा ।।।।

#डॉ.वासीफ काजी

परिचय : इंदौर में इकबाल कालोनी में निवासरत डॉ. वासीफ पिता स्व.बदरुद्दीन काजी ने हिन्दी में स्नातकोत्तर किया है,साथ ही आपकी हिंदी काव्य एवं कहानी की वर्त्तमान सिनेमा में प्रासंगिकता विषय में शोध कार्य (पी.एच.डी.) पूर्ण किया है | और अँग्रेजी साहित्य में भी एमए कियाहुआ है। आप वर्तमान में कालेज में बतौर व्याख्याता कार्यरत हैं। आप स्वतंत्र लेखन के ज़रिए निरंतर सक्रिय हैं।

matruadmin

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