ट्रेनें चलें तो पूरे हों कसमें – वादे …!!

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tarkesh ojha

कितने लोग होंगे जो छोटे शहर से राजधानी के बीच ट्रेन से डेली – पैसेंजरी करते हैं ? रेलगाडियों में हॉकरी करने वालों की सटीक संख्या कितनी होगी ? आस – पास प्राइवेट नौकरी करने वाले उन लोगों का आंकड़ा क्या है , जो अपनी आजीविका के लिए पूरी तरह से रेलवे पर निर्भर हैं ? निश्चित रूप से इन सवालों के सटीक जवाब शायद ही किसी के पास हो . लेकिन इन सवालों का संबंध समाज के जिस सबसे निचले पायदान पर खड़े वर्ग से है , कोरोना काल में उसकी मुश्किलों को बढ़ाने वाले सवाल लगातार बढ़ रहे हैं . कोरोना के खतरे , लॉक डाउन , अन लॉक और सोशल डिस्टेसिंग के अपने तकाजे हो सकते हैं , लेकिन लगातार जाम होते ट्रेनों के पहियों का मसला केवल इस वर्ग की पेट से ही नहीं जुड़ा है . जीवन के कई अहम फैसले और ढेरों कसमें – वादे भी इनकी जिंदगी की पटरी पर स्तब्ध खड़े रह कर सिग्नल हरी होने का इंतजार कर रहे हैं . किसी को लगातार टल रही भांजी की शादी की चिंता है तो कोई बीमार चाचा के स्वास्थ्य को लेकर परेशान है . दुनिया की तमाम दलीलें और किंतु – परंतु उनकी चाह और चिंता के सामने बेकार है , क्योंकि अनिश्चितता की अंधेरी सुरंग में बंद उनकी बदकिस्मती के ताले की चाबी सिर्फ और सिर्फ रेलवे के पास है . एकमात्र ट्रेनों की गड़गडा़हट ही इस वर्ग की वीरान होती जिंदगी में हलचल पैदा कर सकती है . रेलगाड़ियां आम भारतीय की जिंदगी से किस गहरे तक जुड़ी है , इसका अहसास आज मुझे रेलवे स्टेशन के पास स्थित चाय की गुमटी पर लगातार मोबाइल पर बतिया रहे नवयुवक की लंबी बातचीत से हुआ . युवक अपने किसी रिश्तेदार से अपना दर्द बयां कर रहा थ़ा ….कुछ ट्रेनें चली है ….लेकिन उसमें नीलांचल शामिल नहीं है …..इसके शुरू होते ही गांव आऊंगा ….लड़की देख कर रखना …. इस बार रिश्ता पक्का करके ही लौटूंगा …. !!

# तारकेश  कुमार ओझा 

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।