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जिंदगी आ बैठ मेरी पहलु में
करे कुछ बातेंऔर मुलाक़ातें
हम मुसाफिर इस राह के
कदम कदम संग रहे चलते
पाने को ख़ुशी शांति ये जनम
गोता राही समन्दर में लगाते
सब यहाँ हैं ढूंढते हीरे मोती
जाने क्या-क्या पाते खोते
तू मचलती उन जजबातों में
औ दिल रातों में हैं सुलगाते
ख्वाब अनेक दिल व् आँखों में
मुसफिर हूँ यारा राह ना रूके
इश्क जो तुझसे ख्यालातों में
उम्मीद लोग जोड़ते तोड़ते नाते
अनेक जलवे जबतक प्राण दम
रस्म दुनिया की हैं जाते निभाते
कर्म करते चलते रहूँ ये जनम
राज सबके दिल प्रियतम करते
औ कर समर्पण प्रभु चरणों में
जब प्राण शरीर औ मैं हो जाते
यात्रा चुलबुली पीड़ा हँसे हम
हम मुसाफिर बस चलते हैं जाते …!
#डॉ आशागुप्ता”श्रेया”
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