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काल के कपाल पर
नियति के भाल पर
लिखित शब्द मात्र है
“अटल” ही “अटल”
निःशब्द शब्द शब्द है
महाकवि को लब्ध है
काव्य जग में गूंजता
“अटल” ही “अटल”
राजनेता वो संत था
राष्ट्र का महंत था
देश जिसका ग्रंथ था
“अटल” ही “अटल”
जो मौत से डरा नहीं
मर कर मरा नहीं
श्वास श्वास बस रहा
“अटल” ही “अटल”
#तृप्ति नेमा माहुलेबालाघाट(मध्यप्रदेश)
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