
क्रोधी व्यक्ति का व्यवहार मूर्खतापूर्ण होता है,उक्त मानसिक अवधारणा आवश्यक नहीं है।चूंकि क्रोध विरोधाभास का एक लक्षण मात्र है।जिसे मूर्खता का शब्द देकर सभ्य समाज उक्त क्रोधी जीव के प्रति सकारात्मकता के स्थान पर नकारात्मक पग है।क्रोधी को यदि मूर्खता अर्थात पागलपन का शब्द दे दिया जाए तो उस पर संवैधननिक कार्यवाही हो ही नहीं सकती।जबकि प्रत्येक क्रोधी स्वभाव पर कानूनी कार्यवाही की जाती और उसके क्रोध के कारण की कई हानि का दण्ड दिया जाता है।
बताना आवश्यक है कि क्रोधी स्वभाव को यदि कानूनी प्रक्रिया में मूर्खता अर्थात मानसिक स्वास्थ्य अर्थात मानसिक रोगी मान लिया जाए, तो संविधान की धारा 21, मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम 1887, विकलांगता अधिनियम 1996, और वर्तमान माननीय प्रधानमंत्री दामोदर भाई नरेंद्र मोदी जी की सरकार द्वारा पारित दिव्यांगता अधिनियम 2016 उसके बचाव में सामने आ जाता है।जिसमें उक्त मानसिक रोगियों को सशक्त शक्तियां मिली हुई हैं।जिनके दम पर उनके द्वारा की गई हत्या या हत्याओं के बावजूद उन्हें फांसी नहीं दी जा सकती।ऐसी हालत में समाज क्रोधियों को मूर्खता का शब्द देकर कितनी बड़ी भूल कर अपने मस्तिष्क की बुद्धि पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगा रहा है?
आदरणीयों सब से बड़ा प्रमाण यह है कि ऊपरोक्त विचार मैं क्रोध के चरम शिखर की परिस्थिति में लिखकर आपको संवैधानिक जानकारियां दे रहा हूँ।इसलिए मेरी विनम्र प्रार्थना है कि कृपया अपनी अज्ञानता की मानसिकता से ऊपर उठ कर 'क्रोधी' के क्रोध का कारण और उसके उपचार के लिए प्रयास कर मानव, मानवता और मानवीयता की सेवा करें।सम्माननीयों जय हिंद
इंदु भूषण बाली