अटल

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sandhya

रोता अंबर भी आज व्यथित हो
धरती पर छाया सन्नाटा कैसा।

जो थे अटल स्वयं एक रक्षक।
सोते हैं आज धरती की गोदी में।

होनहार थे जन्म से ही वो
शिक्षा में भी उन्नत थे।

सेवा की सदियों से देश की,
परिवार के बंधन से विमुख थे।

लड़े लड़ाई देश की स्वतंत्रता के लिए
अनशन पर भी अड़िग रहे वो।

इरादों में थे अटल, अटल मूल्य पर रहे।
किया नही समझौता ,नतमस्तक हो कर।

दी चुनोती मौत को भी,अंतिम क्षण तक।
झुकने नही दिया ध्वज को,स्वंत्रता दिवस पर।

हार गयी मौत भी जिस से,ऐसे परमपुरुष हुए।
लिखी गाथा अपनी कलम से जिस ने।

पदम् विभूषण से सम्मानित हुए वो।
देश विदेश में लोकप्रिय नेता कहलाये।

अपनी कलम की छाप छोड़ के जनता पर,
कृतियां लिख कर श्रेष्ठ कवि  कहलाये।।

और लिखूं क्या उन का वर्णन,
विरोधी भी थे आज सदमाये।

कांप जाती थी संसद की दीवारें,
जब वो शेर गरजता था।
विरोधियों में साहस जरा न व
बचता था।

आज आँख है नम सभी की,
अंतिम विदा वो ले गये।

जो थे नाम से अटल,
एक अटल कहानी दे गये।।

संध्या चतुर्वेदी
अहमदाबाद, गुजरात

matruadmin

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