विरद श्याम प्यारे निभाते नहीं क्यों ? पुकारें स्वजन किन्तु आते नहीं क्यों ? बढ़ाते रहे चीर हो द्रौपदी की, यहाँ रोज़ ही नारियाँ लुट रही हैं। बिना लाज के मारते भ्रूण-कन्या, बिना बात गायें यहाँ कट रही हैं। तुम्हें गाय-बछड़े हमेशा से प्यारे, उन्हें मौत से आ […]