गरजत ‘गगन’ मद में हैं मेघा, लरजत मन पुलकित सस्नेहा, तरस रहा तन पी संग नेहा, बाहुपाश, रति, मधुमास विशेषा, कौंध रही है तड़ित दामिनी, जाग रही मंत्रमुग्ध यामिनी, संवर रही है धरती मानो, सुहाग सेज चिरप्रतीक्षित बेला, मचल रही उन्मादित ‘अगन’ मंद, अम्बर लिख रहा बूंदों संग […]