ओ मानव तुम्हें क्या चाहिए…., शायद तुम खुशी ढूंढ़ते हो… दूसरो को रुलाकर,सताकर, दुख पहुंचाकर,अपने शब्दों से निरावृत कर- माँ-बहनों को सड़कों पर लाकर, तुम खुशी ढूंढ़ते हो….। पर, नहीं….नहीं…., कर लो यकीं.. खुशी यहाँ है नहीं। किसी दर्दे दिल की दवा बनकर तो देखो……। असहायों की दुआ बनकर तो […]
shreevastav
ओ मेरे प्रिय विरोधी, चिर प्रगति-पथ अवरोधी। तुझे नमस्कार है- शत-सहस्त्र प्यार ही प्यार है। क्योंकि, तेरे विरोध की चिंगारियाँ हीं- मेरी महत्वाकांक्षाओं के यज्ञ की- पवित्र रश्मियाँ हैं, आलोक में जिनके- मेरी इच्छाएँ चढ़ती हैं- प्रगति-पथ की सीढ़ियाँ। कैसे कह दूँ मैं- तुम मेरे विरोधी हो… चिर प्रगति-पथ अवरोधी…? […]