मेरे अंतस्थल में जो है संवेदनाओं का ताना-बाना तुम्हारा ही तो है बुना मैं तो निपट था अनजाना. मैं ठिठुरती सर्दी-सा, था बहुत सहमा-सहमा, कड़क कॉफी की महक-सी तुम ,मेरे भीतर गई समा. नाजुक उंगलियों की छुअन तेरी भर गई मुझमें चिर नरम -सिहरन कहने का अंदाज़ नया वो वो […]
punam
अनेक राह हैं…. लंबी-लंबी सड़कें, उबड़-खाबड़ वीथिकाएं, कच्चे-पक्के रास्ते. बर्फ वाले पहाड़, गहरी तलहटियां, चाय-बागानों की ढलान. उजड़े-बियाबान, घने-वन. हर जगह है मौजूद, इस दुनिया का वजूद. फिर भी,बन न सकी एकछोटी,कच्ची-पक्की राह तुम्हारे और मेरे दरम्यान,, जिसपर चलकर हम आ सके इतने करीब, कि, ‘स्व’ समाहित हो, […]