इंसानियत महके चमन में, ज़िंदादिली का त्राण हो स्वार्थपरता की मुफ़लिसी हो, भीरुता निष्प्राण हो ऐसी फ़िज़ा बने वतन की, चहुँओर हर्ष ही हर्ष हो। है प्रभु!! मेरे सपनों का, ऐसा भारत वर्ष हो॥ उन्माद की उल्टी फ़िज़ाएं, स्थायित्व न ले सकें रूढ़ि की काली घटाएं पुनः न फिर घिर […]