यह जीवन पथ है प्रीत मित्र, चख ले इसका नवनीत मित्र। सम्बन्ध-सुरभि से सुरभित हो, महके तेरा हर गीत मित्र। चिंतन..स्वालंबन..संचित कर, युग के अंतस..को..जीत मित्र। भटके न कभी,अटके न कभी, मत कर्मभूमि से रीत मित्र। कुछ रच दे ऐसा कालजयी, सदियां पढ़ जाऐं बीत मित्र॥ […]
anupam
हे माधव, कहाँ…हो आओ.. हे ..नाथ भूल चुके हैं पार्थ। कर्म ..की ..गीता कर्तव्य..से..रीता धर्म का आवाहन् नहीं ..रहा..पावन। जब…. कि , पाप ..का ..सूरज ..चढ़ा है, जयद्रथ ने चक्रव्यूह गढ़ा है महाभारत की पृष्ठभूमि तैयार है कुरुक्षेत्र.. में ..रण.. हुंकार … है। किन्तु …गांडीवधारी अर्जुन, मोह.. की ..माया ..से […]