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हे माधव,
कहाँ…हो
आओ.. हे ..नाथ
भूल चुके हैं पार्थ।
कर्म ..की ..गीता
कर्तव्य..से..रीता
धर्म का आवाहन्
नहीं ..रहा..पावन।
जब…. कि ,
पाप ..का ..सूरज ..चढ़ा है,
जयद्रथ ने चक्रव्यूह गढ़ा है
महाभारत की पृष्ठभूमि तैयार है
कुरुक्षेत्र.. में ..रण.. हुंकार … है।
किन्तु …गांडीवधारी अर्जुन,
मोह.. की ..माया ..से ..ग्रस्त ..हैं
सहस्र से सहस्र कोटि हो चुके अरिवंश
भय मुक्त है… और मस्त है।
राष्ट् की ..अस्मिता पर.. संकट बड़ा है
किंतु हर पांडव अपने स्वार्थ पर अड़ा है।
द्वापर में दिया गया गीता का उपदेश
प्रभावहीन हो चुका है,
इसीलिए… धनुर्धारी …का गांडीव
युद्ध भूमि में झुका है।
घायल मानवता चीत्कार रही है,
धर्म ध्वजा की अस्मिता पुकार रही है।
हे गोविंद..रखिए सारथी का वेष,
पुन:दीजिए ….गीता का उपदेश॥
#अनुपम कुमार सिंह ‘अनुपम आलोक’
परिचय : साहित्य सृजन व पत्रकारिता में बेहद रुचि रखने वाले अनुपम कुमार सिंह यानि ‘अनुपम आलोक’ इस धरती पर १९६१ में आए हैं। जनपद उन्नाव (उ.प्र.)के मो0 चौधराना निवासी श्री सिंह ने रेफ्रीजेशन टेक्नालाजी में डिप्लोमा की शिक्षा ली है।
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