नदी की कलकल, ध्वनि-सी करती नाचती, इठलाती, बलखाती, बावरी-सी हो गई हूँ आजकल मैं एक, समन्दर की खोज में। मेरे मन का उल्लास, मुझे रूकने नहीं देता थमने नहीं देता, दौड़ पड़ती हूँ मैं हर उस परछाईं की ओर, जो तुम-सी लगती है तुम-सी दिखती है। बह जाती हूँ पवन […]