अब तो अम्बर पर भी गुफ़्तुगू छिड़ गई, नीचे बस्तियों में अब वो बात नहीं॥ सुनकर ये दुखड़ा तितलियाँ भी कह रही, जाने क्यूँ मोहल्ले की गलियां सूनी है पड़ी॥ साइकल के पुराने पहियों की दास्ताँ, न जाने क्यूँ सुनसान पड़े है सब मैदां। वो कंचे,वो लंगड़ी,उस मिटटी से मिला […]