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ऐ शाम तू काश रुक जाती…
तुझे देखने को जी भर के,
दिल करता है।
तेरे जाने से गुमसुम रहता हूँ…
अक्सर तन्हाइयों में,
रात गुजर जाती है।
ऐ शाम तू काश रुक जाती…
तुझे देखने को जी भर के,
दिल करता है।
अक्सर रुसवाइयों से भरी…
तेरी लालिमा मुझे तड़पाती है,
दूसरों को तुम भाओ न भाओ…
अक्सर तू याद खूब आती है।
ऐ शाम तू काश रुक जाती…
तुझे देखने को जी भर के,
दिल करता है।
दिन की तपन तू झेलकर…
तू क्यूँ मुरझाती है,
अक्सर तेरी ये अदा तो…
मुझको क्यूँ भाती है।
ऐ शाम तू काश रुक जाती…
तुझे देखने को जी भर के,
दिल करता है॥
#प्रभात कुमार दुबे
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