यह एक मूर्खतापूर्ण बात है कि हिंदी की प्रगति के लिए प्राइवेट कंपनियों और प्राइवेट अस्पतालों को हिंदी में पढ़े-लिखे इंजीनियर और डॉक्टर को अपने यहाँ नौकरी पर रख लेना चाहिए |
उनको मुनाफे से मतलब है, हिंदी या अंग्रेजी से नहीं | मुनाफे की खातिर वे योग्य लोगों को नियुक्त करेंगे चाहे वे हिंदी में पढ़े हों या अंग्रेज़ी में | अगर IIT और AIIMS में पढ़ाई का माध्यम अनिवार्य तौर पर अंग्रेज़ी रहे और घटिया संस्थानों में भी पढ़ाई का माध्यम अनिवार्य तौर पर अंग्रेजी ही रहे; केवल उत्तर लिखने में हिंदी का विकल्प हो तो बाज़ार में तो यह समझ रहेगी ही कि हिंदी माध्यम से पढ़े इंजीनियर और डॉक्टर अपेक्षाकृत घटिया दर्जे के होते हैं |
फ्रांस, जर्मनी, चीन, जापान कोरिया जैसे देशों के प्राइवेट उद्यमी कहाँ अंग्रेज़ी के प्रति आकर्षित होते हैं ? क्यों ? क्योंकि वहाँ की सर्वोत्कृष्ट प्रतिभा स्थानीय भाषा के माध्यम से पढ़कर निकलती है |
अगर हम चाहते हैं कि हिंदी माध्यम से पढ़े डॉक्टरों और इंजीनियरों की निजी क्षेत्र में पूछ हो तो आई आई टी और AIIMS जैसे देश के सर्वोत्कृष्ट संस्थानों में भी पढ़ाई के माध्यम के रूप में और परीक्षाओं में उत्तर लिखने के माध्यम के रूप में हिंदी का विकल्प होना चाहिए |
श्यामरुद्र पाठक
आप हिन्दी माध्यम में उच्च शिक्षा की बात कर रहे हैं और कर्नाटक सरकार ने हिन्दी उन्मूलन के लिए कमर कस ली है। प्राथमिक शिक्षा से ही हिन्दी को गायब करने का षडयंत्र रचा गया है। प्रथम भाषा सर्वप्रिय अंग्रेजी के बाद द्वितीय भाषा कन्नड़ को अनिवार्य करने के बाद बेचारी हिन्दी के लिए समय ही नहीं बचता। हिन्दी को राष्ट्र भाषा घोषित नहीं किए जाने के दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं।
राजेश्वरी
Medical education in Hindi or regional languages I don’t see any possibility! Recently ABVHV the only university, has closed engineering and many other courses in Hindi for wamt of students.
Kulwant Singh , Secretary, Hindi Vigyan Sahitya Parishad,
BARC, Mumbai, 022 25595378
सेवानिवृत्त विश्वविद्यालय शिक्षक होने के नाते मेरी एक-दो शंकाएं हैं।
हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था लगभग पूरी तरह अंग्रेजी भाषा पर आधारित है। हिन्दी अथवा अन्य प्रादेशिक भाषा-माध्यमों की स्थिति प्रायः सर्वत्र दयनीय है।
संबंधित विद्यालयों के विध्यार्थी चिकित्सा-विषयक संस्थानों तक पहुंच भी पाते हैं इसमें मुझे संशय है। आज के समय में चिकित्सा संस्थनों के प्रायं सभी छात्र अंग्रेजी माध्यम से पहुंचे होते हैं और वही कालान्तर ंमें वहां शिक्षक भी बनते हैं। ये लोग अन्य क्षेत्रों के विशेषज्ञों की भांति सामान्य बोलचाल में भी हिन्दी नहीं बोल पाते। तब कक्षा कार्य हिन्दी में कैसे कर पाएंगे यह प्रशन मेरे सामने हैं। क्या वे एवं उनके छात्र ‘ हिन्दी’’सीखने को तैयार होंगें और हिन्दी में पढ़ेंगे/पढ़ाएंगे?
दूसरा सवाल तकनीकी पारिभाषिक शब्दोंं का है। जो शब्द सरकारी शब्दावली आयोग ने सुझाए हैं उनका प्रयोग करता कौन है? अब तो आम मरीज तक अतिसामान्य शब्दों को भूलते जा रहे हैं, यथा बुखार (टेम्परेचर), वजन (वेट), ऊंचाई/लंबाई (हाइट), यकृत/जिगर (लिवर) आदि।
हिन्दी में किताब लिखना आसान है, किंतु कक्षा में करीब-करीब धाराप्रवाह बोल पाना हम हिन्दी-भाषियों (?) के लिए आसान नहीं। संकल्प का अभाव स्थिति को और भी गंभीर बना देता है।
#योगेंद्र जोशी
भारतीय भाषा प्रेमियों को इन विषयों पर अपना अभिमत प्रस्तुत करना चाहिए।