केदारनाथ दुखान्तिका

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pukharaj
केदारनाथ मे जून 2013 मे आये जल प्लावन के दृश्य देखकर व्यथित हृदय से कुछ क्रोध और क्षोभ से लिखा, प्रस्तुत ।
तू  तो था हे  देव सदैव,
अपने भक्तों का रक्षक,
फिर,   किस कारण  हे देव ?
बना, तेरा दर उनका भक्षक।
तेरे चरण धोकर बन जाती
जो   गंगा  अमृत की धारा,
फिर किस कारण हे देव बन गई?
 वो , मनु शोणित की धारा।
पावन पूजनीय दर तुम्हारा
सदियों   से     बरसों  से,
कैसे अचानक पट  गया ?
वो अनगिनत लाशों से।
मरघट  कैसे  बन  गया ?
यह पावन धाम तुम्हारा,
जहाँ सदैव ज्वलित बहतीं
अखंड ज्योत की धारा।
उनका था क्या दोष
वो तो आये तेरी शरण,
उनके हिस्से ही लिखा था
क्यूँ , इतना दुर्दांत मरण?
ये  कैसा  तांडव  गर्जन ?
ये कौन नियति का क्रम है?
तू ही है जग का त्राता, या
मानव का केवल भ्रम है ?
प्रकृति  नहीं  होती  है,
क्या? देव तुम्हारे बस मे ,
उस पर अंकुश कौन लगाये,
फिर है वो किसके बस में?
तेरे कोप का डर नहीं था चंचला को,
तो घर तेरा अक्षुण्ण कैसे रह पाया?
करनी मर्जी नहीं थीं तेरी तो,
फिर किसकी थी ये औखी माया ?
वे अन्वेषणी बुद्दि मानव की,
वे खोजी बुद्दि मानव की,
तम  मे  निहारने वाली,
क्या, सचमुच मे वही एक है,
विकराल काल की व्याळी?
क्या,कोई कमी रह गई थी,
पूजा अर्चना मे  तुम्हारी ?
या फिर सच्ची भक्ति नहीं रह गई,
 ( सेवा) भावना में हमारी।
या फिर सच्ची भक्ति नहीं रह गई,
भावना में हमारी।
#पुखराज छाजेड़
परिचय : जयपुर के निवासी पुखराज छाजेड़ करीब 10 वर्ष से लगातार लेखन में सक्रिय हैं। जयपुर(राजस्थान) में व्यवसायी होने के बाद भी बतौर रचनाकार आप सतत सक्रिय हैं।

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