कैसे चूका पाउँगा माँ तेरे कर्ज को,
मुझे प्राण देने के तेरे फ़र्ज को.
सौ बार सोचा करूँ तेरे लिए कुछ अनोखा,
पर दुनिया उसे सोचे धोखा,
कैसे दूर कर पाउँगा माँ तेरे उस दर्द को ,
कैसे चूका पाउँगा माँ तेरे कर्ज को,
तेरी उन लोरियों की पुचकार को,
गीतों में छिपे तेरे संगीतकार को,
कैसे चूका पाउँगा उन गीतों की तर्ज़ को,
कैसे चूका पाउँगा माँ तेरे कर्ज को,
उंगली पकड़ कर चलने के एहसास को,
तेरे अमृतमयी ढूध की उस मिठास को,
तेरी ममता के छिपे मीठे मर्ज़ को
कैसे चूका पाउँगा माँ तेरे कर्ज को
सौ जन्म में भी तेरा क़र्ज़ चूका ना पाउँगा,
हर जन्म तेरी ही कोख में जगह पाना चाहूँगा
हर जन्म में तेरा क़र्ज़ चुकाना चाहूँगा
हाँ माँ तेरा ही बेटा बनना चाहूँगा
#प्रमोद कुमार