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है वफ़ा मेरी मुकम्मल इक रिवायत की तरह,
काश आते ज़िन्दगी में तुम इनायत की तरह।
तुझसे मिलना बन्दगी से कम नहीं हर्गिज़ सनम,
मैंने देखा है सदा तुझको इबादत की तरह।
अश्क तेरे मुझसे हरगिज़ छुप नहीं सकते कभी,
रोज़ पढ़ता हूँ तेरा चेहरा किसी ख़त की तरह।
नाम लेकर मैं उसी का काम करता हूँ शुरू,
ज़िन्दगी में अब भी शामिल है वो मुहरत की तरह।
देर से तो देर से मय्यत पे मेरी आया तो,
या मुहब्बत की तरह से या शिकायत की तरह।
छू सका उसको न पाने की ही की कोशिश कभी,
क़ैद दिल में मुद्दतों से था अमानत की तरह।
महजबीं की सिम्त मैंने गुल उछाला था कभी,
सर हिलाया उसने अपना भी इजाज़त की तरह।
आख़िरश आ ही गई वो शाम आँगन में मेरे,
साथ चल दी ज़िन्दगी उसके शराफ़त की तरह।
बोलता दिन-रात सर चढ़कर नशा इक ‘वन्दना’,
कौन क़ाबिज़ है ज़ेहन पर मेरे शौहरत की तरह॥
#वंदना मोदी गोयल
परिचय : वंदना मोदी गोयल, फरीदाबाद में रहती हैं। शिक्षा एमए(हिन्दी)और पत्रकारिता में डिप्लोमा किया है।प्रकाशित कृतियों में उपन्यास ‘हिमखंड,’छठापूत’ सहित सृजन सागर कथा संग्रह,साझा संकलन आदि हैं। आपकी साहित्यिक उपलब्धियों में पिरामिड शीरी सम्मान, काव्य गौरव सम्मान,सारस्वत सम्मान,
साहित्य रतन सम्मान और मुक्तक सम्मान प्रमुख हैं,साथ ही आप मंच पर काव्य पाठ भी करती हैं। अच्छा साहित्य पढ़ना और पुराने गाने सुनना आपका शौक है।
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