पहले के जमाने में रोशनी नहीं होती थी,पर आजकल हमारे घरों में या बड़े समारोह में इतनी रोशनी होती है कि, मानो दिन निकल रहा हो,इस पर ये सवाल है कि,फिर ऐसे में रात्रि भोजन में क्या दोष है ? मेरा कहना है कि, सूर्य के अस्त होते ही सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति में अप्रत्याशित रूप से अनन्तगुनी वृद्धि हो जाती है। कुछ जीव जो सूर्य के प्रकाश में निष्क्रिय होते हैं, रात में वह भी सक्रिय हो जाते हैं । कुछ जीव अप्राकृतिक रौशनी (दीपक, मोमबत्ती, बिजली) में ही उत्पन्न होते हैं यानी इस तरह अपार जीव राशि की हिंसा तो होती ही है।
तो सवाल यह भी है कि,क्या 1 लाख वाट का बल्ब जला लेने से भी फूल को खिला सकते हैं ? ये कार्य तो सूर्य के प्रकाश से ही हो सकता है। बल्ब जला लेने से सूर्य के प्रकाश की भरपाई नहीं हो सकती है। अगर आप खुले आसमान के नीचे खा रहे हैं तो आपके भोजन की थाली चलते-फिरते जीवों की कब्रिस्तान गिनी जाएगी। आसमान से इतने सूक्ष्म जीव गिरते हैं कि,आप कल्पना भी नहीं कर सकते हैं।
अगर आप हरे-भरे गार्डन में खाना खा रहे हैं या खिला रहे हों तो याद रहे कि,एक तरह से आप एक गर्भधारी महिला के उपर खड़े हैं। इस हालत में उसे जितनी पीड़ा होती है,उतनी ही पीड़ा उन मूक जीवों को दे रहे हैं। बस फर्वोक इतना है कि,ये दूसरे पौधों की तरह ‘टच मी नॉट’ नहीं बोल पा रहे हैं। रात्रि-भोजन के स्वास्थ्य-सम्बन्धी ढेरों दोष हैं पर उनकी चर्चा नहीं करूँगा।
स्पष्ट कहता हूँ कि,भगवान महावीर की एक भी बात आज का भी विज्ञान ठुकरा नहीं सका है। हो सकता है कि, हम रात्रि भोजन न छोड़ पाएँ,पर यदि हम हजारों को खिलाने वाले कार्यक्रम रात में ही करें,रात्रि भोजन के भवन बनाएँ,उसमे दान करें या फिर उसमें व्यापार करें,तो अवश्य सोचिए कि,क्या यह हमें शोभा देता है। क्या कोइ बेटा हजारों के बीच अपने घर में अपने माता-पिता की प्रतिष्ठा खराब करता है ? भगवान महावीर हमारे परमपिता हैं,हमें जैन धर्म की निंदा हो, ऐसे निंदनीय कार्य नहीं करने चाहिए। मेरा अनुरोध है कि,रात में खाने-खिलाने से बचते हुए हम और आप ‘अहिंसा परमो धर्म’ का संदेश पूरे विश्व में पहुँचाएं।
#राजेश बागरेचा