जीव हिंसा से बचें

0 0
Read Time3 Minute, 6 Second

rajesh

पहले के जमाने में रोशनी नहीं होती थी,पर आजकल हमारे घरों में या बड़े समारोह में इतनी रोशनी होती है कि, मानो दिन निकल रहा हो,इस पर ये सवाल है कि,फिर ऐसे में रात्रि भोजन में क्या दोष है ? मेरा कहना है कि, सूर्य के अस्त होते ही सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति में अप्रत्याशित रूप से अनन्तगुनी वृद्धि हो जाती है। कुछ जीव जो सूर्य के प्रकाश में निष्क्रिय होते हैं, रात में वह भी सक्रिय हो जाते हैं । कुछ जीव अप्राकृतिक रौशनी (दीपक, मोमबत्ती, बिजली) में ही उत्पन्न होते हैं यानी इस तरह अपार जीव राशि की हिंसा तो होती ही है।
तो सवाल यह भी है कि,क्या 1 लाख वाट का बल्ब जला लेने से भी फूल को खिला सकते हैं ? ये कार्य तो सूर्य के प्रकाश से ही हो सकता है। बल्ब जला लेने से सूर्य के प्रकाश की भरपाई नहीं हो सकती है। अगर आप खुले आसमान के नीचे खा रहे हैं तो आपके भोजन की थाली चलते-फिरते जीवों की कब्रिस्तान गिनी जाएगी। आसमान से इतने सूक्ष्म जीव गिरते हैं कि,आप कल्पना भी नहीं कर सकते हैं।
अगर आप हरे-भरे गार्डन में खाना खा रहे हैं या खिला रहे हों तो याद रहे कि,एक तरह से आप एक गर्भधारी महिला के उपर खड़े हैं। इस हालत में उसे जितनी पीड़ा होती है,उतनी ही पीड़ा उन मूक जीवों को दे रहे हैं। बस फर्वोक इतना है कि,ये दूसरे पौधों की तरह ‘टच मी नॉट’ नहीं बोल पा रहे हैं। रात्रि-भोजन के स्वास्थ्य-सम्बन्धी ढेरों दोष हैं पर उनकी चर्चा नहीं करूँगा।
स्पष्ट कहता हूँ कि,भगवान महावीर की एक भी बात आज का भी विज्ञान ठुकरा नहीं सका है। हो सकता है कि, हम रात्रि भोजन न छोड़ पाएँ,पर यदि हम हजारों को खिलाने वाले कार्यक्रम रात में ही करें,रात्रि भोजन के भवन बनाएँ,उसमे दान करें या फिर उसमें व्यापार करें,तो अवश्य सोचिए कि,क्या यह हमें शोभा देता है। क्या कोइ बेटा हजारों के बीच अपने घर में अपने माता-पिता की प्रतिष्ठा खराब करता है ? भगवान महावीर हमारे परमपिता हैं,हमें जैन धर्म की निंदा हो, ऐसे निंदनीय कार्य नहीं करने चाहिए। मेरा अनुरोध है कि,रात में खाने-खिलाने से बचते हुए हम और आप ‘अहिंसा परमो धर्म’ का संदेश पूरे विश्व में पहुँचाएं।

                                                                        #राजेश बागरेचा

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

मुकद्दर से लेकर इजाज़त

Tue Feb 21 , 2017
न अब एक भी लम्हा खारा करेंगे, हम आँसू भी मीठे बहाया करेंगे । वहीं तक ये रस्ते मेरे नाम हैं बस , कि जुगनू,जहाँ तक उजाला करेंगे । ये सोचा है अब मैकदे छोड़कर हम, तुम्हारे तसव्वुर में बहका करेंगे । मुकद्दर से लेकर इजाज़त ही अब, नया कोई रिश्ता हम बनाया करेंगे । इन […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।