कितनी माताओं की,
सूनी हो गई गोद।
तरसे होंगे रोटी के लिए,
असंख्य अबोध।
इस बँटवारे का,
नगर कितना लम्बा है ?
अनगिनत स्त्रियों का,
संसार सूना हो गया।
मुस्कुराती बगिया का,
चमन वीरान हो गया।
कपोलों पर सूखा,
सागर कितना गहरा है ?
रक्षाबंधन पर कितनी राखियां,
सिसकी,तड़पी होंगी।
दिवाली पर अगणित,
मंगल टीके बहे होंगे।
बहनों के नेह का,
रास्ता कितना लंबा है ?
बही होंगी कितनी,
खून की नदियां।
मिटी होंगी हिंदू और
मुस्लिम की कहानियां।
अगणित लाशों का,
किस्सा कितना लंबा है ?
अनगिनत अनाथ,
दर-बदर भटके होंगे।
असंख्य अबलाओं के,
आवरण उघड़े होंगे।
आह-कराह का,
दर्द कितना लंबा है ?
कितनों ने परिजनों को,
हलाल होते देखा।
अपने जिगर के टुकड़ों को,
दम तोड़ते देखा।
तूफानी हवाओं का,
नगर कितना लंबा है ?
कितने बेमौसम,
सैलाब बहे होंगे।
कहे-अनकहे,
दर्द सिसके होंगे।
खामोश निगाहों का,
सूनापन कितना लम्बा है ??
#आशा जाकड़
परिचय: लेखिका आशा जाकड़ शिकोहाबाद से ताल्लुक रखती हैं और कार्यक्षेत्र इन्दौर(म.प्र.)है। बतौर लेखिका आपको प्रादेशिक सरल अलंकरण,माहेश्वरी सम्मान रंजन कलश सहित साहित्य मणि श्री(बालाघाट),कृति कुसुम सम्मान इन्दौर,शब्द प्रवाह साहित्य सम्मान(उज्जैन),श्री महाराज कृष्ण जैन स्मृति सम्मान(शिलांग) और साहित्य रत्न सम्मान(जबलपुर)आदि मिले हैं। जन्म१९५१ में शिकोहाबाद (यू.पी.)में हुआ और एमए (समाजशास्त्र,हिन्दी)सहित बीएड भी किया है। 28 वर्ष तक इन्दौर में आपने अध्यापन कराया है। सेवानिवृत्ति के बाद काव्य संग्रह ‘राष्ट्र को नमन’, कहानी संग्रह ‘अनुत्तरित प्रश्न’ और ‘नए पंखों की उड़ान’ आपके नाम है।
बचपन से ही गीत,कविता,नाटक, कहानियां,गजल आदि के लेखन में आप सक्रिय हैं तो,काव्य गोष्ठियों और आकाशवाणी से भी पाठ करती हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं से जुड़ी हैं।