काश कि ऐसा हुआ न होता

0 0
Read Time3 Minute, 47 Second
om agraval
जीत-हार की बात नहीं संघर्ष अभी भी जारी है,
तब भी सीता हारी थी तो अब भी सीता हारी है।
कैसे कह दूँ रावण हारा बस उसके जल जाने से,
बचे हुए हैं कितने रावण कर्मोँ का फल पाने से।
कब तब ऐसे रावण को ये देश रहेगा ढोता,
काश कि ऐसा हुआ न होता॥
हे राम कहो क्या सचमुच तुमने रावण को ही मारा था,
या फिर अपने निहित स्वार्थ में व्यक्ति एक संहारा था।
शायद जीत तुम्हारी अब भी इसीलिए  शर्मिंदा है,
तुमने रावण मारा लेकिन रावण अब भी जिन्दा है।
दुष्कर्मों के बीज सदा ही कौन रहा है बोता,
काश कि ऐसा हुआ न होता॥
सीताओं का हरण आज भी खूब यहाँ पर होता है,
शासन और प्रशासन भी तो कुम्भकर्ण-सा सोता है।
कर्तव्यभाव क्यूँ कुंद हुए हैं,संस्कार क्यूँ रोता,
काश कि ऐसा हुआ न होता॥
छल-दंभ द्वेष-पाखण्ड झूठ का देखो बजता डंका है,
फूली और फली ये कैसी अहंकार की लंका है।
हनूमान-सा हममे कोई आज नहीं क्यूँ होता,
काश कि ऐसा हुआ न होता
स्वर्ण हिरण बन जाने कितने गली-गली में डोल रहे,
कौव्वों जैसी नीति-नियत पर कोयल जैसा बोल रहे।
कब तक धैर्य रखेगा पौरुष,ये धैर्य नहीं क्यूँ खोता,
काश कि ऐसा हुआ न होता॥
जब तक नारी नहीं सुरक्षित जब तक नारी हारी है,
जीत-हार की बात नहीं,संघर्ष अभी भी जारी है।
मौन समर्थन जैसे लगता,अंतस क्यूँ न रोता,
काश कि ऐसा हुआ न होता॥
           #ओम अग्रवाल ‘बबुआ’
परिचय: ओमप्रकाश अग्रवाल का साहित्यिक उपनाम ‘बबुआ’ है। मूल तो राजस्थान का झूंझनू जिला और मारवाड़ी वैश्य हैं,परन्तु लगभग ७० वर्षों पूर्व परिवार यू़.पी. के प्रतापगढ़ जिले में आकर बस गया था। आपका जन्म १९६२ में प्रतापगढ़ में और शिक्षा दीक्षा-बी.कॉम. भी वहीं हुई। वर्तमान में मुंबई में स्थाई रूप से सपरिवार निवासरत हैं। संस्कार,परंपरा,नैतिक और मानवीय मूल्यों के प्रति सजग व आस्थावान तथा देश धरा से अपने प्राणों से ज्यादा प्यार है। ४० वर्षों से  लिख रहे हैं। लगभग सभी विधाओं(गीत,ग़ज़ल,दोहा,चौपाई, छंद आदि)में लिखते हैं,परन्तु काव्य सृजन के साहित्यिक व्याकरण की न कभी औपचारिक शिक्षा ली,न ही मात्रा विधान आदि का तकनीकी ज्ञान है।
काव्य आपका शौक है,पेशा नहीं,इसलिए यदा-कदा ही कवि मित्रों के विशेष अनुरोध पर मंचों पर जाते हैं। लगभग २००० से अधिक रचनाएं लिखी होंगी,जिसमें से लगभग ७०० के करीब का शीघ्र ही पाँच खण्डों मे प्रकाशन होगा। स्थानीय स्तर पर ढेरों बार सम्मानित और पुरस्कृत होते रहे हैं।
आजीविका की दृष्टि से बैंगलोर की निजी बड़ी कम्पनी में विपणन प्रबंधक (वरिष्ठ) के पद पर कार्यरत हैं।

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

झुलस रहा गणतंत्र,यह राष्ट्र धर्म नहीं

Sat Jan 27 , 2018
जहाँ हुए बलिदान प्रताप और जहाँ पृथ्वीराज का गौरव हो,जहाँ मेवाड़ धरा शोभित और जहाँ गण का तंत्र खड़ा हो,ऐसा देश अकेला भारत है,परन्तु वर्तमान में जो हालात विश्वपटल पर पहुँचाए जा रहे हैं,वो भारत का असली चेहरा नहीं है।  बलिदानों और शूरवीरों की धरा पर बच्चों पर हमले,राष्ट्र के […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।