अंतर्मन

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“जैसे ही नर्स विभोर को चेक करने आई ,मेरे लिए सुनहरा मौका था ,जिसे मैंने गंवाना उचित भी नहीं समझा और बाहर की तरफ भाग आया ।”
अस्पताल परिसर में आते जाते लोगों की निगाहें,जैसे  मुझे  कह रही थी कि इस कायर ,धोखेबाज़,कमीने इंसान को देखो,जो दोस्ती के नाम पर कलंक है ।
अस्पताल का मेहतर, जो रोज़ विभोर का कमरा साफ करने आता है ,उसने मुझे देखा तो मुझे लगा जैसे वह कह रहा हो ,”भागो नमकहराम , भागो! देखते हैं तुम कितना भाग सकते हो ।”
मेरा मन चीत्कार कर उठा ।
चारों तरफ से आती हुई ,अपेक्षाओं की आवाज़ों  से खुद को बचाता हुआ मैं पास ही बने गार्डन में चला गया, जिससे स्वस्थ हवा में सांस ले सकूँ ।
“लेकिन मेरी दूषित घिनौनी सोच  व भावनाओं से वातावरण भी इतना कलुषित व प्रदूषित हो चुका था, जिसमें मेरा दम घुटने लगा था । चारों तरफ धुँआ ही धुँआ था ।”
करीब ७ वर्ष पहले जब मैं इस शहर में नया नया आया था, तब विभोर ने ,अपने आत्मीय व्यवहार से ,मुझसे परिचय किया था और पढ़ाई व  परिस्थितियों से संघर्ष करने में सहायता भी की थी ।
मैं गरीब परिवार से था और विभोर के पिता बड़े व्यवसायी ,परन्तु सौतेली माँ होने की वजह से वह होस्टल में ही रहता था ।
“उसको साथी चाहिए था और मुझे पैसे।”
हर कदम पर विभोर ने मेरी सहायता की ।
मैं भी सीढ़ियों की तरह उस भावुक इंसान का इस्तेमाल करता हुआ, आज एक बड़े पद पर पहुंच चुका था ।
दो वर्ष पहले उसके पिता की मृत्यु होने के बाद भाई व माँ ने उसे धोखे से सम्पत्ति से वंचित कर दिया था ।
परन्तु वह फिर भी हंस कर कहता था ,” माधव ,जब तक तुम मेरे साथ हो, मुझे किसी से  कोई गिला शिकवा नहीं है । “
परन्तु पिछले ६ महीने पहले उसके सिर में भयंकर दर्द उठने के बाद जब चेकअप हुआ,उसमें उसके ब्रेन ट्यूमर निकला ।
“दो  बार तो आपरेशन हो चुका था ,लेकिन ट्यूमर किसी न किसी रूप में दुबारा उभर  आता था । “
इस जटिल इलाज़ की प्रक्रिया में उसकी बचत भी समाप्त हो गई थी ।
अभी कल एक और ऑपरेशन होना था,जिसके लिए ५० हज़ार रुपये जमा करवाने थे ।
विभोर एकदम आश्वस्त था ,वह सुबह ही मुझसे कह रहा था ,” तुम मेरे साथ हो तो मुझे क्या फिक्र है,देखना जल्दी ही हम दोनों फिर एक साथ मस्ती करेंगे ।”
 जब पैसे जमा कराने का समय आया तब तक मैं वहाँ से गायब हो चुका था ।
परन्तु इस काली सोच की घुटती साँसों में मुझे लगने लगा कि आज मेरा दम निकल कर ही रहेगा ।
रह-रह कर निस्वार्थ व निर्दोष विभोर का चेहरा मेरी आँखों के सामने घूमने लगा ।
“थोड़ी देर बाद ,मेरा हाथ स्वत: जेब में पड़े एटीएम की तरफ चला गया  और पांव हॉस्पिटल की ओर मुड़ चले ।”
#कुसुम पारीक 

matruadmin

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