जहाँ हुए बलिदान प्रताप और जहाँ पृथ्वीराज का गौरव हो,जहाँ मेवाड़ धरा शोभित और जहाँ गण का तंत्र खड़ा हो,ऐसा देश अकेला भारत है,परन्तु वर्तमान में जो हालात विश्वपटल पर पहुँचाए जा रहे हैं,वो भारत का असली चेहरा नहीं है।
बलिदानों और शूरवीरों की धरा पर बच्चों पर हमले,राष्ट्र के इतिहास के नाम पर भविष्य पर पथराव ये राष्ट्र गौरव नहीं,बल्कि राष्ट्र को बदनाम करने की सुपारी लेकर काम करने की नीयत ही प्रतीत होती है।
गणतंत्र दिवस पर इस बार इतिहास खुद को दोहराएगा। भारत ने २६ जनवरी १९५० को अपना पहला गणतंत्र दिवस मनाया था और उस समय दक्षिण पूर्व एशिया के दिग्गज नेता और इंडोनेशिया के पहले राष्ट्रपति सुकर्णो मुख्य अतिथि थे। आजादी के ६८ साल बाद भारत ने एक बार फिर इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विदोदो को गणतंत्र दिवस पर आमंत्रित किया है।
हालांकि इस बार सिर्फ इंडोनेशिया के राष्ट्रपति ही मुख्य अतिथि नहीं होंगे,भारत ने आसियान के नौ अन्य राष्ट्राध्यक्षों को भी इस ऐतिहासिक पल के लिए आमंत्रित किया है जो गणतंत्र दिवस की परेड में भारत की सैन्य क्षमता और सांस्कृतिक विविधता के गवाह बनेंगे। दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन आसियान के १० देशों के राष्ट्राध्यक्षों को आमंत्रित किया है जो अपने-आप में अप्रत्याशित है।
और इस गौरव क्षण में राष्ट्र जातिवाद के दावानल में जल रहा है,विरोध तो इतिहास के साथ हुई खिलवाड़ का होना था,परन्तु कहीं मासूम बच्चों की स्कूली बस पर पथराव तो कहीं बसें जलाई जा रही है | ये सब सोची-समझी साजिश है हिन्द की अस्मिता को दाँव पर लगाकर वैश्विक मंच पर बदनाम करने की।
राष्ट्र आन्तरिक कलह की आग में झुलस रहा है,और झुलसा हुआ शरीर लेकर क्या हम गणतंत्र दिवस मनाएंगे ?आखिर शर्म तो तब आनी चाहिए थी,जब देश के अंदर ही जयचंद जिन्दा हो |
राष्ट्रीय पर्व के समीप आते ही गर्व और शौर्य का परचम लहराने वाले राजपूतों के नाम पर करणी सेना बनाकर शौर्य को बदनाम करने का बीड़ा उठाकर राष्ट्र को तोड़ा जा रहा है।
खण्डित गणतंत्र क्या राष्ट्रधर्म का निर्वाह कर रहा है ??
धिक्कार है ऐसे शिखंडियों पर,जो राष्ट्र के गौरव और सम्मान को विश्व पटल पर लज्जित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हों।
अब भी हमारी आजादी और गणतंत्र अधूरा है, क्योंकि अभी भी जयचंद जिन्दा है।
भामाशाह और प्रताप के वंशज ऐसा तो नहीं कर सकते,क्योंकि सुना है शेर पुष्प और मासूम घास नहीं खाता,परन्तु दुर्भाग्य है इस देश का कि यहाँ चंद चांदी के सिक्कों की खनक से माँ का चीरहरण भी सहर्ष देखा और खरीदा जा सकता है।
करणी सेना द्वारा जो राष्ट्रीय पर्व के समीप ही राष्ट्र संपत्तियों को नुकसान पहुँचाया जा रहा है,ये उनके जयचंद होने के प्रमाण से ज्यादा क्या होगा। भारत में जिस तरह से करणी सेना ‘पद्मावत’ फिल्म के विरोध में राष्ट्र संपत्ति पर प्रहार कर रही है,ये लोकतंत्र या गणतंत्र नहीं बल्कि विरोध के तरीके से राष्ट्रीय नुकसान है।
बहरहाल देश को झुलसने से बचाने में अपना सर्वस्व अर्पण करें,वर्ना हम एक दिन बिखरा हुआ राष्ट्र और खण्ड-खण्ड विखंडित समाज ही बच्चों को विरासत में सौंप पाएंगे।
#डॉ.अर्पण जैन ‘अविचल’
परिचय : डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ इन्दौर (म.प्र.) से खबर हलचल न्यूज के सम्पादक हैं, और पत्रकार होने के साथ-साथ शायर और स्तंभकार भी हैं। श्री जैन ने आंचलिक पत्रकारों पर ‘मेरे आंचलिक पत्रकार’ एवं साझा काव्य संग्रह ‘मातृभाषा एक युगमंच’ आदि पुस्तक भी लिखी है। अविचल ने अपनी कविताओं के माध्यम से समाज में स्त्री की पीड़ा, परिवेश का साहस और व्यवस्थाओं के खिलाफ तंज़ को बखूबी उकेरा है। इन्होंने आलेखों में ज़्यादातर पत्रकारिता का आधार आंचलिक पत्रकारिता को ही ज़्यादा लिखा है। यह मध्यप्रदेश के धार जिले की कुक्षी तहसील में पले-बढ़े और इंदौर को अपना कर्म क्षेत्र बनाया है। बेचलर ऑफ इंजीनियरिंग (कम्प्यूटर साइंस) करने के बाद एमबीए और एम.जे.की डिग्री हासिल की एवं ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियों’ पर शोध किया है। कई पत्रकार संगठनों में राष्ट्रीय स्तर की ज़िम्मेदारियों से नवाज़े जा चुके अर्पण जैन ‘अविचल’ भारत के २१ राज्यों में अपनी टीम का संचालन कर रहे हैं। पत्रकारों के लिए बनाया गया भारत का पहला सोशल नेटवर्क और पत्रकारिता का विकीपीडिया (www.IndianReporters.com) भी जैन द्वारा ही संचालित किया जा रहा है।