आज रमेश अपनी पूरी पढ़ाई करके अपना घर पहुँच गया था,उसे ऩौकरी की चिंता थी। उसके साथ बहुत सारे दोस्त थे जो बेरोजगार ही थे। ये लोग एकसाथ बैठते और जिन्दगी के ताने-बाने बुनते थे। रमेश भी कभी आशा-कभी निराशा के बीच अपने आप को पाता।
सभी दोस्त अखबार के पन्ने में अपने भविष्य को तलाशते। नौकरी का कुछ इश्तेहार निकले,तो फार्म भरकर डाल देते। उसके बाद इन्तजार की घड़ी शुरू हो जाती। जहाँ दो सौ लोगों को नौकरी मिलनी है,वहाँ दस हजार की भीड़ इकट्ठी हो जाती। बेरोजगारों की फौज तैयार थी। एक चपरासी की नौकरी में एम.ए. उत्तीर्ण तक के ऩौजवान अपनी किस्मत आजमाने की कोशिश में लगे हैं।
एक दिन किसी से पता चला कि,शहर में एक कम्पनी के लोग आए हैं और विदेश में नौकरी
दिलवाएंगे,अच्छा-खासा वेतन होगा। तब क्या था,रमेश भी अपने दोस्तों के साथ चला गया। वहाँ अपना सारे परिणाम दिखाए और सब कागज जमा हो गए। अब बारी आई पैसे जमा करने की,विदेश जाने के लिए तो पैसे चाहिए न ?
जितना मांगा गया,वो बच्चों की औकात से बाहर था। फिर भी पिता ने जमीन, माँ ने अपने गहने बेचकर पैसे का इन्तजाम कर दिया,इसी उम्मीद में कि बेटे की नौकरी हो जाए,तो घर के हालात बदल जाएंगे। सबने चैन की सांस ली,क्योंकि सब इंतजाम हो गया था।
कम्पनी वाले ने कहा कि,१५ दिन के अन्दर सबको ले जाएंगे। इन्तजार की घड़ी बड़ी कठिन होती है,फ़िर भी
एक महीना गुजर गया। न कम्पनी वाला आया,और न इन लोगों को नौकरी मिली। सब हाथ मलते रह गए,धन भी गया,और उम्मीद भी गई।
#स्नेह प्रभा पाण्डेय
परिचय: १९५४ में ७ जुलाई कॊ जन्मीं स्नेह प्रभा पाण्डेय का जन्म स्थान-बिहार राज्य है। आप स्नातक तक शिक्षित तथा गृहिणी के रुप में कार्यरत हैं। आपका वर्तमान और स्थाई निवास शहर-धनबाद(राज्य -झारखण्ड) ही है।सामाजिक क्षेत्र में आप मानववाधिकार संगठन में महिला इकाई सहित अन्य से भी जुड़कर बेटियों की बेहतरी के लिए काम करती हैं। आपका रचनाकर्म अतुकांत है,वैसे लघुकथा भी लिखती हैं। कुछ साहित्यिक समूहों से भी जुड़ी हैं। आपके लेखन कार्य का उद्देश्य-अपनी संतुष्टि और समाज की कुरीति को उभारकर मिटाना है।