Read Time2 Minute, 35 Second
ठिठुरन-सी लगे सुबह के हल्के रंग-रंग में।
जकड़न भी जैसे लगे देह के अंग-अंग में॥
उड़ती-सी लगे धड़कन आज तो आकाश में।
डोर भी है हाथ में,हवा भी है आज साथ में॥
पर कागजी तितली लगी सहमी-सी,l उड़ने की शुरुआत में॥
फैलाए नाजुक पंख,थामा डोर का छोर।
हाथ का हुआ इशारा,लिया डोर का सहारा॥
डोली इधर से उधर,गई नीचे से ऊपर।
भरी उमंग से उड़ने लगी जब हुई उड़ती तितलियों के साथ में॥
बतियाती जा रही है,पंछियों के पँखों से।
होड़-सी ले रही है,ज्यों आसमानी रंगों से॥
हुई थोड़ी अहंकारी,जब देखी अपनी होशियारी।
था दृश्य भी तो मनोहारी,ऊँची उड़ान थी भारी॥
डोर का भी रहा सहारा।
हाथ करता रहा इशारा॥
तभी लगी जाने किसकी नजर।
एक पल में जैसे थम गया प्रहर॥
लग रहे थे तब हिचकोले।
यों लगा जैसे संसार डोले॥
डोर से डोर थी अब कट गई।
इशारे की बिजली भी झट से गई॥
अब तो हवा भी न दे पाई सहारा।
घड़ी दो घड़ी का था अब खेल सारा॥
ऊँची ही ऊँची उड़ने वाली अब नीचे ही नीचे आई।
जो आंखें मदमा रही थी अब तक उनमें अंधियारी थी छाई॥
तभी उसे लगा एक तेज झटका।
डोर लगी तनी-सी हुआ जैसे खटका॥
डोर का पुनः मिल रहा था सहारा।
हाथ और थे पर मिल रहा था इशारा॥
फिर उड़ी आकाश में तब बात समझ ये आई।
बिना सहारे-बिना इशारे न होगी आसमानी उड़ाई॥
#दुर्गेश कुमार
परिचय: दुर्गेश कुमार मेघवाल का निवास राजस्थान के बूंदी शहर में है।आपकी जन्मतिथि-१७ मई १९७७ तथा जन्म स्थान-बूंदी है। हिन्दी में स्नातकोत्तर तक शिक्षा ली है और कार्यक्षेत्र भी शिक्षा है। सामाजिक क्षेत्र में आप शिक्षक के रुप में जागरूकता फैलाते हैं। विधा-काव्य है और इसके ज़रिए सोशल मीडिया पर बने हुए हैं।आपके लेखन का उद्देश्य-नागरी की सेवा ,मन की सन्तुष्टि ,यश प्राप्ति और हो सके तो अर्थ प्राप्ति भी है।
Post Views:
325