चिंता छोड़ सार्थक चिंतन की ओर कैसे बढ़ें

0 0
Read Time7 Minute, 55 Second
pinki paturi
सामान्यतया चिंता किसी भी प्रकार के कार्य के सफल होने में,पूरा होने में शंका होने पर होती है। सफलता मिलने की शंका जब ही होती है,जब प्रयास में कमी रह जाती है। बच्चों की पढ़ाई को लेकर, खान-पान को लेकर,संस्कारों को लेकर, बिगड़ गई आदतों और संगत को लेकर, शादी के लिए वर-वधू ढूँढने को लेकर, उनके भविष्य,व्यवसाय और कमाई को लेकर,भाई-भाई की,सास-बहू की, देवरानी-जेठानी या फिर पड़ोसियों के साथ अनबन को लेकर,नौकरी में अपने सेठ या सहयोगियों से मनमुटाव को लेकर,किसान बारिश को लेकर,कोई तबादले की,कोई पदोन्न्ति की,या इसी तरह के ख्याल को लेकर सामान्य व्यक्ति चिंता करता है।
 किसी को यह कह के देख लो,कि चिंता मत करो,कोई फायदा नहीं है। वह जरूर कहेगा कि,मेरी जगह खुद को रख के देखो,पता चल जाएगा कि चिंता किसे कहते हैं ?
चलो मान लिया जाए कि,आपकी समस्या बहुत बड़ी है,हम उसकी तह तक नहीं पहुंच पा रहे तो यह तो मानते हो न कि ऋतु बदलती है,दिन-रात बदलते हैं।अरे हमारे शरीर की एक-एक कोशिका भी पल-प्रतिपल बदलती है तो समस्या भी हमेशा नहीं रहेगी। प्रकृति के नियम के अनुसार हर समय,हर रोज़ बदलाव निरंतर चलता रहता है।
समस्या पर जितना ध्यान देंगे,चिंता भी बढ़ेगी,शरीर को हानि भी होगी और शायद परिणाम भी अनुकूल नहीं हों।
अधिक चिंता करना व्यक्ति को अवसादग्रस्त कर देगी। मित्र मंडली में, चौराहों पर,सेमिनारों में,भाषणों में,विद्यालयों-महाविद्यालयों में,यहाँ तक कि संसद में भी कुछ बड़े स्तर पर चिंता की जाती है और ज्यादा से ज्यादा समय की बरबादी करके बिना किसी परिणाम के हर बार समाप्त हो जाती है। ऐसा नहीं है कि कोई भी कार्य नहीं होते,पर ज्यादातर समय ऐसा होता है,यह कह रही हूँ।
जहाँ चिंता की बजाय चिंतन होगा,वहाँ परिणाम सुखद होंगे। चिंतन में समस्या पर ध्यान केन्द्रित नहीं किया जाता है, निदान पर ध्यान दिया जाता है।
चिंतन करने से बीमारी नहीं लगती।चिंतन व्यक्ति के वास्तविक स्वरूप की पहचान कराता है। आंकलन की क्षमता बढ़ाता है,समस्या का मूल ढूँढकर जड़ से उखाड़ फेंकने की बुद्धि जागृत कराता है।
चिंता में अशांति है,चिंतन में शांति है।
जब चिंता चतुराई को भी खा जाती है,तो भला चिंता क्यों करें ? चिंतन आगे बढ़ने का रास्ता बनाता है,बल्कि चिंता रोक के रखती है। चिंता करें तो शरीर व बुद्धि का नाश होता है और चिंतन करें तो मस्तिष्क और बुद्धि का विकास होता है।
 मनुष्य का स्वभाव है कि वह सुख, शांति,सम्पन्नता,सफलता चाहता है,किंतु आधुनिक युग में इन्हें सरलता से प्राप्त नहीं किया जा सकता है। जीवन की कुछ समस्याओं का कोई हल नहीं होता है, लेकिन कुछ इतनी कठिन नहीं होती जितनी दिखाई देती हैं।
कभी-कभी तनावग्रस्त स्थिति का आना स्वाभाविक है,परंतु इस प्रकार की स्थिति निरंतर बनी रहे तो मानसिक और शारीरिक रुप से महत्वपूर्ण अंग कमजोर हो जाते हैं।
 वारन टेंपिल ने मनुष्य की जिंदगी पर सटीक टिप्पणी करते हुए कहा है कि, ‘मनुष्य रोते हुए पैदा होता है,शिकायत करते हुए जीता है और अंततः निराश होकर मर जाता है।’
 जो लोग वर्तमान में जीते हैं,वो ही सच्चा सुख भोगते हैं,क्योंकि जो गुज़र गया,वह समय चाहे सुखद या दुखद क्यों न रहा हो,उसकी अहमियत अब नहीं है। जो आने वाला है,वह भविष्य के गर्भ में है, इसलिए जो ऐश्वर्य आज है,वह कल भी रहे,यह जरूरी नहीं, इसलिए संसार को त्याग भाव से ही भोगें।
चिंता में मन,बुद्धि अशांत हो जाते हैं, चित्त अपनी सामान्य स्थिति से नीचे आने लगता है,और ऊर्जा अधोगति में बहने लगती है। जब मन में किसी विचार के मनन से एकाग्रता,शांति,उत्साह,और प्रेम का भाव पैदा होने लगे तो उसे चिंतन कहते हैं।
 इसमें मन व बुद्धि सूक्ष्म होने लगती है, चित्त अपनी सामान्य स्थिति से ऊपर उठकर उर्ध्वगति को प्राप्त होने लगता है।
 लेखक स्वेड मार्डेन के अनुसार-‘चिंता और चिंतन एक ही माँ की दो संतानें हैं। चिंताग्रस्त व्यक्ति असफल और चिंतन करने वाला सफल होता है।’
 विवेकानंद जी,महात्मा गाँधी,और अन्य महापुरुषों ने भी चिंतन करने की सलाह ही दी है।
 चिंतन की ओर बढ़ाया गया एक-एक कदम मंजिल के निकट पहुँचता है।
 अगर जीवन में चिंताओं को कम करना है तो चिंतन बढ़ाना होगा,जितना चिंतन बढ़ेगा,उतनी चिंता कम होती जाएगी, क्योंकि चिंतन हमें जीवन जीना सिखाता है,चिंता हमें मारती है,इसलिए कुविचारों को कुचल डालो।
संतोष,आत्मसंतुष्टि का प्रयास करें, शांति मिलेगी-
 ‘चाघर संतोष धन,सब धन धूल समान।’
#पिंकी परुथी ‘अनामिका’ 
परिचय: पिंकी परुथी ‘अनामिका’ राजस्थान राज्य के शहर बारां में रहती हैं। आपने उज्जैन से इलेक्ट्रिकल में बी.ई.की शिक्षा ली है। ४७ वर्षीय श्रीमति परुथी का जन्म स्थान उज्जैन ही है। गृहिणी हैं और गीत,गज़ल,भक्ति गीत सहित कविता,छंद,बाल कविता आदि लिखती हैं। आपकी रचनाएँ बारां और भोपाल में अक्सर प्रकाशित होती रहती हैं। पिंकी परुथी ने १९९२ में विवाह के बाद दिल्ली में कुछ समय व्याख्याता के रुप में नौकरी भी की है। बचपन से ही कलात्मक रुचियां होने से कला,संगीत, नृत्य,नाटक तथा निबंध लेखन आदि स्पर्धाओं में भाग लेकर पुरस्कृत होती रही हैं। दोनों बच्चों के पढ़ाई के लिए बाहर जाने के बाद सालभर पहले एक मित्र के कहने पर लिखना शुरु किया था,जो जारी है। लगभग 100 से ज्यादा कविताएं लिखी हैं। आपकी रचनाओं में आध्यात्म,ईश्वर भक्ति,नारी शक्ति साहस,धनात्मक-दृष्टिकोण शामिल हैं। कभी-कभी आसपास के वातावरण, किसी की परेशानी,प्रकृति और त्योहारों को भी लेखनी से छूती हैं।

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

सुन लो पुकार 

Sat Jan 6 , 2018
शीश नवाते हैं हम भगवन, चाहें चरण धूलि मिल जाय। पंच विकारी भव के बंधन, दलदल से लो आप बचाय॥ सम्मान तुझे देते भगवन, तेरे दर पर शीश नवाय। ढूंढ रहे हैं खुद को कब से, हमें स्वयं से दो मिलवाय॥ मुरली की वो तान सुना दो, हृदय रहे व्याकुल […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।