हर तरफ मचा है ये शोर कि आज है मेरा दिन,
सोचा मांग लूँ कोई तोह्फा आज जो हो थोडा भिन्न,
बनावटी फूलों से दुनिया क्या तुम मेरी सजा पाओगे?
जन्म दिया जिसने तुमको उसको तुम क्या दे पायोगे!
अपने वजूद की लड़ाई लड़ रही मै माँ की कोख से,
जंहा घेरे रहते हैं सौ सवाल मुझे चारों ओर से,
कैसे जिन्दा रख पाऊँगी खुद को इस समाज में
मेरे इन मौन प्रश्नों के उतर क्या तुम दे पाओगे?
जन्म दिया जिसने तुमको उसको तुम क्या दे पायोगे!
सींचती हूँ खून से धरा को तब फसल नई उगाती हूँ,
सबको देकर खुशबु खुद मै काँटों में उलझी रह जाती हूँ,
मेरे सफर के दर्द को तुम क्या जान पाओगे?
जन्म दिया जिसने तुमको उसको तुम क्या दे पायोगे!
हर घर में रावण है बैठा राम के भेष में यह मै देख रही
छला हुआ महसूस आज खुद अपने को ही देश में कर रही
अरे जाओ मेरे हिस्से का आसमान तुम क्या दे पाओगे?
जन्म दिया जिसने तुमको उसको तुम क्या दे पायोगे!
रख लिया मैने कदम चाँद पर और जमीन भी नाप ली,
और गहरे सागर की गहराई आँखों से भांप ली ,
जाओ तुम मेरा कोई बड़ा सम्मान न करो .
कंधे से कन्धा मिला कर चलने का हक़ तुम क्या दे पाओगे?
जाने भी दो “हर्ष” तुम नारों के सिवा कुछ ना दे पाओगे!
#प्रमोद कुमार “हर्ष”