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सुबह की प्यारी-सी नींद में वो प्यारी-सी आवाज,-अरे भाग्यवान उठो री,सूरज चढ़ आया है।’ दीपक ताऊ की आवाज ने जैसे नींद को छूमंतर कर उसे नई चेतना प्रदान कर सचेत कर दिया। उस आवाज के साथ ही इक आवाज बिमला ताई की आई,तो जैसे अम्रत के घोल में जहर घोल गई।-‘ये कुलच्छनी को न जाने किसने ‘भाग्यवान’ नाम रख दिया। माँ-बाप तो मरे इसके,अब मेरे सर धर गए इसको।’
दीपक ताऊ बीच में बातों को काटते हुए-‘क्या तुम सुबह-सुबह ही शुरू हो गई,बेचारी क्या बिगाड़ी है तुम्हारा।’ ‘बेचारी!औऱ ये मैं कहती हूँ इसका अब ब्याह रचा दो।’
‘ठीक है,ठीक है,कोई वर मिले तब न।’ ‘मिले तब न का क्या मतलब,वो अपना सरयू है न।’
‘कौन वो कबाड़ी का जो काम करता है ?’
‘हाँ,हाँ उसी से अच्छा कमाऊ लड़का है ,अपने बीबी अपने परिवार को चलाने भर तो कमा ही लेता है,और हाँ मैंने तो उससे ये कह भी दिया कि तेरा ब्याह में अपनी भाग्यवान से ही करूंगी।’
‘अरे तुमने बिना पूछे मुझसे ये फैसला कैसे कर लिया!’
‘मैं कहे देती हूं अगली बीस तारीख को इसका लग्न भी पंडित जी से दिखा ली है,अगर तुम बीच में आए तो समझ लेना।’
आखिर दीपक ताऊ की चलेगी ही क्या।भाग्यवान जैसे उस बीस तारीख को सपने संजोए नई उम्मीदों के साथ जीने लगी। भाग्यवान की शादी सरयू से हो जाती है,सरयू अपनी भाग्यवान को उम्मीदों से भी ज्यादा प्यार करने लगा,लेकिन घर की स्थिति अच्छी न रही। कबाड़ी से उतना कमाई न होती, जितना दोनों का पेट भर सके। प्रत्येक शाम न जाने सरयू कागज का कौन-सा टुकड़ा लाता,और हर दिन देखकर मुस्कुराता। कागजों के इतने टुकड़े जमा हो गए घर में कि,भाग्यवान को लगा इसे बाहर फेंक देना चाहिए। घर की सफाई करते समय उसे जलाकर आराम करने जा रही थी। सरयू आने के साथ पूछता है-‘वो टिकट जो हमने रखी थी कहाँ हैं ?’
‘उसे! उसे तो हमने जला दिया।
‘जला दिया!अरे वो लॉटरी के टिकट थे हर रोज मैं उसी से ख्वाब देखता हूँ और तूने उसी को जला दिया।तू,तू सही में कुलक्षणी है।’
इस शब्द-बाण ने जैसे भग्यवान को पिघला कर रख दिया।
‘क्या मुझसे ज्यादा आपके लिए वो टिकट मायने रखते हैं।’
‘हाँ,जब पैसे ही न होंगे तो मैं और तू कहाँ।’ कहकर सरयू बाहर चला गया।अपने पति को खुश करने की कोशिश में भग्यवान अपने रखे दस के नोट लेकर लॉटरी के टिकट खरीद लाती है। सरयू के लौटते के साथ उसके हाथ में रखकर-‘लो इसे रख लो,मुझसे बढ़कर है।’
‘ये क्या है! इक लॉटरी की टिकट,उतने टिकट से तो कभी मेरा कुछ निकला नहीं ,और उतने खरीदे गए टिकट को तुमने जला दिया,तो एक टिकट से क्या होगा।’
‘तुम कल जाकर तो देखो!’
उसने सोचा कि,एक उम्मीद से उसका पति खुश हो जाए। सुबह-सुबह अपने पति के काम पर जाने के बाद भाग्यवान सवालों की एक दुनिया में खो जाती है। भगवान तूने मुझे कभी खुशी नहीं दी,एक पति है जो मुझसे इतना प्यार करता है वो भी एक कागज के टुकड़े के कारण मुझे कुलक्षणी कह डाला। न जाने कब शाम हो गई। शाम को सरयू आते के साथ जैसे खुशियों से झूम गया..’हो री भाग्यवान,लॉटरी लग गई रे,वो भी पूरे पन्द्रह लाख कीl बोलो तुझे क्या चाहिए। तू सही में मेरे लिए तो भाग्यवान ही हो। बोलो जल्दी बोलो,क्या चाहिए।
`मुझे जब मांगने को बोलते हो तो मांगूं!`
`हाँ,हाँ बोलो! मैं तेरी हमेशा भग्यवान बनी रहूँ,दोगे!`
यह सुनकर ग्लानि सरयू की आंखों में जैसे सावन की वर्षा करने लगी।
#प्रभात कुमार दुबे (प्रबुद्घ कश्यप)
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