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ये जो नक्सलवादी हैं
नेता नहीं फसादी हैं।
बातों से कब मानेंगे
जो जूतों के आदी हैं।
मसले से क्या है मतलब
जो केवल उन्मादी हैं।
गाँधी जी से क्या मतलब
केवल कपड़े खादी हैं।
लोक नहीं है भेंड़ हैं ये
बस गन्ने की फांदी है ।
लोक तंत्र की चर्चाएं
झूठी एक मुनादी है ।
ये चुनाव ये मतगणना
पैसे की बर्बादी है ।
नाती पोते ब्याह लिये
अब बुढऊ की शादी है ।
#दिवाकर
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