कब आओगे रविवार?
काम बहुत है,
जो रख छोड़े,
भरोसे तुम्हारे
प्यारे रविवार|
साफ-सफाई
कपड़ों की धुलाई,
घर को सजाना है,
कब आओगे रविवार?
दोस्तों को बुलाना है,
उनके घर भी जाना है,
पिकनिक मनाना है,
आ भी जाओ रविवार |
बना लूँ कोई शिल्प आकृति ,
या कर लूँ कोई चित्रांकन,
लिख भी लूँ कोई कविता,
जब आए रविवार।
अहा दिन ये देखो प्यारा है,
सबका राज दुलारा है,
पर ऑख अभी नहीं खुली है,
दिन चढ़ आया है,
सुबह अभी ढली है।
चादर समेटो,बिस्तर उठाओ,
अरे कोई नाश्ता बनाओ,
नहाने की हुई छुट्टी,
कब शाम हुई, कब दिन ढला?
हड़बड़ गड़बड़
चलो कर लो कल की तैयारी,
सोमवार की सुबह है भारी,
तुम आए थे रविवार?
तुम फिर आना रविवार,
अबकी बार आना
दो दिन के लिए,
काम बहुत है
जो रख छोड़े
भरोसे तुम्हारे
प्यारे रविवार!!!
#शिल्पा सोलंकी
परिचय : बतौर उप-अभियंता (ग्रामीण विकास विभाग) शिल्पा सोलंकी मध्यप्रदेश के झाबुआ में ही कार्यरत हैं। यह 2010 से सोशल मीडिया में अपनी कविताओं के ज़रिए सक्रिय उपस्थिति बनाए हुए हैं तथा अंग्रेजी के साथ ही हिन्दी में भी लेखन करती हैं।