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उठना-चलना और बोलना जिसने मुझे सिखा डाला,
नौ महीने तक छुपा पेट में जिसने भार उठा डालाl
जिसने जन्म दिया है व पाल-पोसकर बड़ा किया है,
जिसने मुझे सिखाया जीना,वही मातु है मेरी शालाll
जिसकी उँगली पकड़ चला मैं शिक्षा वाली शाला में,
जिसके बल पर अकड़ चला मैं,दुनिया की घुड़शाला मेंl
कंधों पर चढ़ दुनिया देखी,जिसके दम पर बड़ा हुआ,
बचा रहा मैं शीत कोप से,बापू तेरी दुशाला मेंll
यौवन आया तो दिल अटका मधुर-मधुर मधुबाला में,
तन-मन-धन सब वार दिया उसके अधरों की हाला में।
माँ की ममता याद रही न,प्यार को भूल गया मैं,
मेरे दिल से खेल सुंदरी छोड़ गई मधुशाला मेंll
#दिलीप सिंह ‘डीके’
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