सज – धज कर दुपहिया पर
घर से निकलते हैं कुछ युवा होते लड़के
और मौसम चाहे कोई हो
छाँव से भी झुलसती हैं लड़कियां
आँख तक , मुहं पर दुपट्टा बांधे ही
घर से निकलती हैं कुछ लड़कियां ।
देखा है मैंने –
स्कूल कॉलेज या कोचिंग
के समय ,
कांधे पर बैग लटकाए
किसी बाइक के पीछे बैठ
निर्जन राहों पर मस्ताते हुए इन्हें
उन्मादित लड़कों के साथ ।
आपत्ति नहीं है मुझे
किसी की निजता से
और न ही आपत्ति है
उनके स्वभावगत
अंधे आकर्षण से ।
जानता हूँ –
उम्र का स्वाभाविक सैलाब है यह ।
पर उन परिजनों के विश्वास का
क्या होगा भविष्य ?
जिन्होंने बांध रखे है –
इन मुहं छुपाती लड़कियों
और इठलाते -इश्क फरमाते
लड़कों से , उम्मीदों के बांध !
इतर इसके गर्त में जाते
इन नासमझ लड़के -लड़कियों का
अक्सर होता है कितना बुरा हाल
देखा है इसे भी हम – सबने ।
मानता हूँ –
रोकना मुश्किल है
गर्त के इस सैलाब को
पर करना ही होगा अब यह
उन्माद भरे माहौल से
बचाने के लिए उन्हें ।
बनना पड़ेगा कठोर
अपनी संतानों के प्रति
चाहे वह हो बेटा या बेटी।
नहीं चेते यदि समय पर तो-
भोगना ही होगा , वह दुष्परिणाम
जिसकी कल्पना भी
नहीं करना चाहते हैं हम !
#देवेंन्द्र सोनी, इटारसी।