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(अटल जी को जन्मदिन पर समर्पित)
आसमाँ पर एक ही ध्रुव है अटल,
है अटल।
इस धरा के ध्रुव बनो तुम भी अटल,तुम भी अटल॥
हर किसी की आस्था विश्वास हो तुम,
इस हिमालय के चमकते भाल हो तुम…
तुमसे ही महके सदा ये विश्व पटल,विश्व पटल।
इस धरा के…॥
परमाणु परीक्षण कर दिखाया पोखरण में,
कहा-हम किसी से कम नहीं हैं इस जहां में…
अब नहीं यहाँ कोई मुक़ाबिल चल-अचल, चल अचल।
इस धरा के…॥
तन,मन तुम्हारे स्वच्छ सरोवर जल भरे,
कभी मौन भी मुखरित हो उठता हरे-हरे…
यहाँ तुमसे मिलने को गैर भी जाते
मचल,जाते मचल।
इस धरा के…॥
#सुलोचना परमार ‘उत्तरांचली’
परिचय: सुलोचना परमार ‘उत्तरांचली’ का जन्म १२ दिसम्बर १९४६ में हुआ है। आप सेवानिवृत प्रधानाचार्या हैं जिनकी उपलब्धि में वर्ष २००६ में राष्ट्रीय सम्मान,राज्य स्तर पर सांस्कृतिक सम्मान,महिमा साहित्य रत्न २०१६ सहित साहित्य भूषण सम्मान,विभिन्न कैसेट्स में गीत रिकॉर्ड होना है। आपकी रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविता,गीत,ग़ज़ल,कहानी व साक्षात्कार के रुप में प्रकाशित हुई हैं तो चैनल व आकाशवाणी से भी काव्य पाठ,वार्ता व साक्षात्कार प्रसारित हुए हैं। हिंदी एवं गढ़वाली में ६ काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। साथ ही कवि सम्मेलनों में राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर शामिल होती रहती हैं।
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