जो तुम न कह पाए,तुम्हारी खामोशी ने कह दिया।
रुका हुआ बेबसी का पानी मेरी आँखों से बह गयाll
भूलना चाहकर भी भूल नहीं पा रही हूँ।
वो प्यार वो वादे संभाल रख न पा रही हूँll
वो हँसी वो कहकहे सब कल की बात हो गईl
जीता हुआ विश्वास अब हारी बिसात हो गईll
सपना सजा हुआ हमारा आज सारा रह गया।
जो न तुम……….ll
शीत की ठिठुरन हो या जलन हो ग्रीष्म कीl
आँधी तूफां और बारिश की कहाँ परवाह कीll
चल रहा था जिन्दगी का सफरl
साथ-साथ थे हम दो हमसफरll
कैसी आई बाढ़ वो अपना घरौंदा ढह गया।
जो तुम ………….ll
शुरू हो गया था गिले-शिकवों का दौरl
शक की सुई थी घूमती मेरे ही चारों ओरll
घर-परिवार भी मेरा अब न रहाl
मुझ पर किसी का जरा भी रहम न रहाll
सब अनमना-सब अनजाना सब बेमानी हो गया।
जो तुम…………….ll
घर से उठ बातें हो गई चौपालों कीl
कोर्ट-कचहरी के चक्कर कानूनी मसलों कीll
कोशिश की मैंने कई बार तुम्हें समझाने कीl
पर जिद थी तुम्हारी बात पर अड़ जाने कीll
थककर मैंने भी वो फैसला स्वीकार कियाl
जन्मों के बन्धन को कागज के पुर्जे पर वार दियाll
परिचय: श्रीमती पुष्पा शर्मा की जन्म तिथि-२४ जुलाई १९४५ एवं जन्म स्थान-कुचामन सिटी (जिला-नागौर,राजस्थान) है। आपका वर्तमान निवास राजस्थान के शहर-अजमेर में है। शिक्षा-एम.ए. और बी.एड. है। कार्यक्षेत्र में आप राजस्थान के शिक्षा विभाग से हिन्दी विषय पढ़ाने वाली सेवानिवृत व्याख्याता हैं। फिलहाल सामाजिक क्षेत्र-अन्ध विद्यालय सहित बधिर विद्यालय आदि से जुड़कर कार्यरत हैं। दोहे,मुक्त पद और सामान्य गद्य आप लिखती हैं। आपकी लेखनशीलता का उद्देश्य-स्वान्तः सुखाय है।