Read Time1 Minute, 31 Second
काली स्याह रात थी जिन्दगी मेरी,
तुम मुझे सुहानी सहर कर गई।
तुम मई-जून की तपती दुपहरी बन,
मुझे शीतल शाम नवम्बर कर गई।
खुद प्यासी नदी बनकर,
मुझे पूरा समंदर कर गई।
जब बोलती हो मैं अवाक-सा रहता हूँ,
न जाने तेरी बातें क्या असर कर गई।
तुम जीवन का महकता गुलाब बनकर,
मुझे फूलों पर मंडराता भंवर कर गई।
लू के थपेड़े झेले,तपती धूप भी सही,
तुम मुझे बसंत की ठंडी लहर कर गई।
उजड़ा हुआ था मेरा आशियां,
तुम मुझे आबाद शहर कर गई॥
#गणेश मादुलकर
परिचय: गणेश मादुलकर का साहित्यिक उपनाम-मुसाफ़िर है। इनकी जन्मतिथि -५ सितम्बर १९९७ तथा जन्म स्थान-गांव ग्राम बम्हनगावं(मध्यप्रदेश)है। शहर हरदा में बसे हुए गणेश मादुलकर अभी विद्यार्थी काल में हैं। यह किसी विशेष विधा की अपेक्षा सब लिखते हैं। आपके दो प्रकाशन आ चुके हैं,जिसमें एक साझा संग्रह है। इनके लेखन का उद्देश्य सामाजिक रूढ़िवादिता पर कटाक्ष प्रहार के साथ ही प्रकृति चित्रण,देश-काल, वातावरण एवं अन्य विषय पर भी लेखन जारी है।
Post Views:
572